________________ 476 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 205 महातपस्वी गुरु-शिष्य वि.सं. 2035 में करीब 45 साल की उम्र में दीक्षा लेकर एक मुनिवरने अत्यंत वैराग्यवासित होकर कर्म निर्जरा के लिए अपनी आत्मा को निम्नोक्त प्रकार से तपश्चर्या में जोड़ दिया है / अत्यंत पापभीरु, भवभीरु एवं निष्परिग्रही यह महात्मा अपने परिचय में आनेवाले प्रत्येक सद्गृहस्थ को संयम की प्रेरणा प्रदान करते हैं / 20 साल के दीक्षा पर्याय में एक ही संस्तारक आदि उपकरणों का उपयोग करनेवाले यह मुनिवर वर्तमानकाल में आकिंचन्य धर्म का आदर्श उदाहरण रूप हैं / ज्ञान की आशातना से बचने के लिए कागज के छोटे से टुकड़े को भी वे अपने हाथ से प्रायः फाड़ते नहीं हैं और पत्रलेखन में भी अत्यंत करकसर करते हैं / पिछले 18 साल से लगातार वरसीतप करते हुए इन तपस्वी महात्माने 1 वरसीतप एकांतर उपवास के पारणे आयंबिल से, वरसीतप अठ्ठम के पारणे एकाशन से, 3 वर्षीतप उपवास के पारणे एकाशन से, 5 वर्षांतप छठ के पारणे एकाशन से, एवं 8 वर्षीतप छु के पारणे बिआसन तप से किये हैं / एकांतरित 500 आयंबिल, वर्धमान तप की 31 ओलियाँ, लगातार 12-3045 उपवास, श्रेणितप आदि तपश्चर्या करनेवाले प्रस्तुत मुनिवरने दीक्षा से पूर्व एक वर्ष से लेकर आज दिन तक की हुई तपश्चर्या की तालिका उनके अतिनिकट के परिचित युवाश्रावक के पाससे निम्नोक्त प्रकारसे प्राप्त हुई है / वि.सं. उपवास आयंबिल एकाशन बिआसन नवकारसी विशेषता 2034 39 206 23 25 62 उपधान तप किया 2035 14 303 37 - - वर्धमान तप की ओलियाँ/दीक्षा 2036 89 224 72 - - लगातार 45 उपवास 2037 49 201 44 36 25 लगातार 12 उपवास 2038 158 121 105 - - मासक्षमण/उपवास+आयंबिल से वर्षीतप 2039 219 - 135 - - छठ्ठ से वर्षीतप+ श्रेणीतप 2040 225 23 60 41 - छठ से वर्षीतप मुंबई से शिखरजी के संघमें