________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 475 फिर तो तीर्थ के प्रभाव से तथा गुरुकृपा से ऐसी हिम्मत आयी कि सोलभत्ता पूरा करने के लिए एक एक उपवास का पच्चक्खाण सानंद लेने लगे / उत्तरोत्तर स्फूर्ति बढते जाने से फिर तो मासक्षमण की मंजिल की और आगे बढते ३०वाँ उपवास एवं संवत्सरी का दिन भी आ गया ! मुनि श्री ने इस लम्बी तपश्चर्या के दौरान अपने गुरुदेव श्री द्वारा छह कर्मग्रन्थ के अर्थ की सामूहिक दो घंटे की वाचना में भी अंत तक भाग लिया और लिखित परीक्षा भी देते थे !... अब सहवर्ती साधु-साध्विजीयों को यह चिंता होने लगी कि यह मुनि श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण से पहले केशलोच किस प्रकार करवा सकेंगे। किन्तु मुनि श्रीने बहुत स्वस्थता एवं प्रसन्नता के साथ 1 घंटे में लोच करवा लिया !... हमेशा उनके बाल की जड़ें मजबूत होने के कारण डेढ घंटा लगता था / किन्तु इस बार तीर्थभूमि, मासक्षमण की मांगलिक तपश्चर्या तथा गच्छाधिपतिश्री आदि बड़ों की कृपा के प्रभाव से एक घंटे में अच्छी तरह से लोच हो गया / तीर्थभूमि, तपश्चर्या तथा गुरुकृपा का प्रत्यक्ष प्रभाव-चमत्कार देखकर सभी बहुत ही अनुमोदना करने लगे। इन मुनिवर के नाम के साथ साम्य रखता हुआ एक प्रकरण ग्रंथ कई प्रवचनकार चातुर्मास में व्याख्यान के लिए पसंद करते हैं / क्योंकि उसमें श्रावक के 21 गुणों आदि का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है। - मुनि श्री के गुरु महाराज का नाम मोक्ष का पर्यायवाची चार अक्षर का बिना जोडाक्षर वाला शब्द है / गच्छाधिपति श्री तो नाम के अनुसार कई गुणों के भंडार यथार्थनामी आचार्य भगवंत थे / ___"निशाने से चूका सौ वर्ष जीये" कहावत के अनुसार आठवें दिन अवश्य पारणा करने का विचार करने वाले मुनि श्री ने देखते ही देखते 30 उपवास कर लिये / इस घटना से बोध लेकर, सभी कसौटी के मौकों पर हिम्मत न हारकर उल्लासपूर्वक रत्नत्रयी की आराधना करें, यही शुभाभिलाषा।