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________________ 474 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 पू. गच्छाधिपतिश्री के एक प्रशिष्य थे, जिन के आचारांग सूत्र के योग चल रहे थे और बुखार भी आ रहा था, वह पूज्यश्री के पास श्रावण सुदी पंचमी के दिन ज्ञान पंचमी होने के कारण एक उपवास का पच्चक्खाण लेने आये / 22 वर्ष के यह मुनि दिखने में 16 वर्ष के लगते थे / यह मुनि विनय वैयावच्च-स्वाध्याय रुचि आदि गुणों के कारण गच्छाधिपतिश्री के हृदय में बस गये थे / इस कारण पूज्यश्री ने सहजता से पूछा कि - "मुनिवर ! तुम भी मासक्षमण करोगे ना !... मुनि श्री ने स्वप्न में भी मासक्षमण की कल्पना नहीं की थी। हाँ ! पर्युषण में आठ दिन अढ़ाई करने की भावना जरूर थी / किन्तु अभी तो केवल ज्ञानपंचमी के एक उपवास की ही तैयारी थी, और साथ में आचारांग सूत्र के चालु योग में से बुखार के कारण निकलकर कल पारणा करने का विचार था / . फिर भी मुनिश्री गच्छाधिपतिश्री की भावना का सम्मान करते हुए एक एक उपवास के पच्चक्खाण लेने लगे / किन्तु सातवें दिन कर्म राजा ने उन्हें आगे बढ़ने से रोकने के लिए अपनी ताकत का उपयोग किया। कर्म राजा ने मुनि श्री के तन में ऐसी असह्य वेदना उत्पन्न कर दी कि मुनि श्री ने गच्छाधिपति को कह दिया कि, "साहेबजी ! अब आगे बढ सकुँ वैसी स्थिति नहीं है / कल तो जरूर पारणा करूँगा !" समयज्ञ गच्छाधिपतिश्री ने उन्हें कहा कि - "भले ही ! जैसी तुम्हारी इच्छा / मेरा तनिक भी आग्रह नहीं है / तुमको कल जिससे शाता रहे, वैसा खुशी से करना / " किन्तु दूसरे दिन प्रातः कालमें पुनः मुनि श्री को स्फूर्ति का अनुभव होने पर उन्होंने स्वयं पू. गच्छाधिपतिश्री से आठवें उपवास का पच्चक्खाण लिया और वह दिन समतापूर्वक व्यतीत किया / उनके गुरुदेव श्री ने दूसरे दिन कहा कि, "अट्ठाई तप तो तुमने पहले भी कर लिया है, इसलिए हो सके तो अभी एकाध उपवास कर लो, जिससे नौ उपवास हो जाए / विनयवंत मुनिवर ने गुरु इच्छा का सन्मान करके नौवाँ तथा दसवाँ उपवास भी आनंद से पूर्ण कर लिया /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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