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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 473 ___इनके बड़े भाई ने इनसे पहले दीक्षा ली है, तथा पिताश्री ने भी . बादमें दीक्षा ली है / साढे पाँच अक्षर के इस मुनिवर के नाम के एक सुप्रसिद्ध उपाध्याय भगवंत द्वारा रचे गये अनेकों स्तवन एवं सज्झायें आज जैन संघ में बहुत गाये जाते हैं / यह मुनिवर जिस समुदाय (गच्छ) के हैं उसके तीन नाम हैं। कहो ! कौन होंगे ये मुनिवर ! और ये कौन से समुदाय के होंगे?... ३०वे उपवास में प्रसन्नता के साथ केस लोच करवाते मुनिवर / सं. 2040 में गच्छाधिपति गुरुदेव श्री की तारक निश्रामें 67 ठाणा साधु-साध्वीजी श्री समेतशिखरजी महातीर्थ में चातुर्मासार्थ विराजमान थे / गच्छाधिपतिश्री ने चार माह तक प्रतिदिन उत्तराध्ययन सूत्र के विनय अध्ययन के प्रथम श्लोक के आधार पर साधु-साध्वीजी भगवंतों को वाचना प्रदान की / कई साधु-साध्वीजी भगवंतों को आगम सूत्रों का योगोद्व करवाया / पर्युषण के दिन नजदीक आते गुरुदेवश्री ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए बताया कि, इस पावन भूमि पर बीस बीस तीर्थंकर मासक्षमण कर मोक्ष में पधारें हैं, इसलिए कम से कम बीस मासक्षमण * हो तो अच्छा / " पूज्य श्री की भावना को साकार करने के लिए बीस साधु-साध्वीजी तथा चार श्रावक-श्राविकाएँ तैयार हो गये / शेष साधुसाध्वीजी में से एक नवदीक्षित बाल साध्वीजी तथा एक बीमार साध्वीजी को छोड़कर सभी साधु-साध्वीजीयों ने कम से कम अट्ठाई और उससे विशेष तपश्चर्या की / कितने ही मासक्षमण के तपस्वी मुनिवर दूसरों से सेवा कराने की बजाय स्वयं दूसरे तपस्वी मुनिवरों की चरणसेवा आदि करने के लिए अहमहमिका करने लगे / वह दृश्य वास्तवमें अद्भुत था।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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