________________ 470 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 14 पूर्व, अक्षयनिधि, 45 आगम तप, शत्रुजय तप, पंचरंगी तप, युगप्रधान तप, रत्न पावड़ी तप, 24 भगवान के एकाशन, 2 अछई आदि कई तप किये / इन्होंने गृहस्थावस्था में भी तीन उपधान, सिद्धिगिरि की 99 यात्रा, करीब 10 छ'री' पालक संघों में शामिल होकर विविध तीर्थों की यात्राएँ की / पाँच स्थानों पर जिनबिम्ब भरवाये / 6 वर्ष तक हर पूनम को सिद्धगिरि की यात्रा सिद्धगिरि में 2 चातुर्मास, 2 बार स्वद्रव्य से अष्टोत्तरी स्नात्र सह अठ्ठाई महोत्सव इत्यादि अनेक आराधनाएँ की थीं / जाप तप के साथ जप मिले तो सोने में सुगन्ध के समान अद्भुत चित्त शुद्धि का अनुभव होता है / महातपस्वी मुनिराज श्री ने अपने जीवन में निम्न लिखित जाप किया था / (1) नवकार मंत्र का जाप..... डेढ़ करोड़ (2) "नमो अरिहंताणं" पद का जाप ..... 50 लाख (3) "सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु" ..... एक करोड़ (4) "ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः".... 9 लाख (5) “नमो लोए सव्व साहूणं .... 9 लाख (6) सरस्वती मंत्र ..... 1 लाख अन्य पवित्र मंत्रों का भी लाखों की संख्या में जाप किया है / इस तरह अनेक प्रकारों के तप-जप से तन-मन को अभ्यस्त करने के बाद उन्होंने दि. 10-3-80 से गुणसंवत्सर नाम की सुदीर्घ भीष्म तपश्चर्या का प्रारंभ किया / सोलह महिने के इस तप में 407 उपवास तथा 73 पारणे आते हैं / भगवान महावीर के शिष्य खंघक अणगार तथा मेघ मुनि आदि ने यह तप किया था, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख आता है / उसके बाद पिछली शताब्दियों के इतिहास में इस तप को करनेका कोई उल्लेख कहीं नहीं आता है।