________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 467 परन्तु स्याद्वादमय श्री जिनशासन में प्रायः किसी भी बात का एकांत विधान या एकान्त निषेध नहीं है / उससे उपरोक्त दृष्टांत में और इस पुस्तक में वर्णित अन्य दृष्टांतों में 251 और 211 उपवास की तपश्चर्या एक विशिष्ट अपवाद के रूप में विचारणीय है / तत्त्व तो केवली जाने / सुज्ञेषु किं बहुना ? उपरोक्त महात्मा के नाम का अर्थ "साथमें जन्मा हुआ" ऐसा होता है / "साधो ... समाधि भली" इस प्रसिद्ध वाक्य में रिक्त स्थान की जगह पर जो शब्द है, यह इन तपस्वी सम्राट के नाम का सूचन करनेवाला है ! &00652835260000000000 लगातार 108 उपवास तथा 500 अठाई के तपस्वी / / 385 - दि. 21-1-94 के दिन घोघा बंदरगाह के पास के तणसा गाँव में एक तपस्वी महात्मा के दर्शन हुए थे / इन महात्मा का जन्म गुजरात में भावनगर जिले के मेथला गाँवमें . हुआ था / इन्होंने सं. 2008 में 19 वर्ष की उम्र में प. पू. आचार्य भगवन्त श्री विजयप्रतापसूरीश्वरजी म.सा. के पास दीक्षा अंगीकार की थी। इनको सं. 2032 में पन्यास पद पर आरूढ किया गया / इन महात्मा ने दीक्षा से पहले सं. 2002 से (13 वर्ष की उम्र से ) प्रायः हर महिने एक अठ्ठाई तप करना प्रारंभ किया / जिस दिन हमें वे मिले, तब तक 496 अट्ठाईयाँ पूर्ण कर चूके थे / उनकी कुल 500 अठ्ठाई करने की भावना थी, जो कबकी पूर्ण हो गई होगी / इसके अलावा इन महात्मा ने अपने जीवन में निम्नलिखित तपजप की आराधना की है।