SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 463 तीन वर्ष पहले उनके हस्तों से एक बड़े नूतन तीर्थ की अंजन शलाका-प्रतिष्ठा हुई थी। ___ उनके नाम में उपर्युक्त तीर्थ के प्रेरक उनके गुरुदेव श्री का नाम भी समा जाता है। और उनके नाम द्वारा सूचित बात जिनके भी जीवन में होती वह जगत में सर्वत्र सम्माननीय बनता है / बोलो - कौन होगी, यह गुरू-शिष्य की जोड़ी ? 388888638 प्रथम राख बोहराई जाय तो ही पारणा करने का गुप्त अभिग्रह / / करीब 3 वर्ष पूर्वमें वर्धमान तप की 100 ओली परिपूर्ण करने वाले एक महात्मा प्रायः प्रत्येक ओली के पारणे के समय विविध प्रकार के अभिग्रह धारण करते हैं / एक बार उन्होंने अठ्ठम के पारणे पर ऐसा अभिग्रह मन में धारा कि कोई प्रथम राख बोहराए तो ही पारणा करना, नहीं तो उपवास चालु रखने !... बहुत घरों में घूमे, किन्तु राख कौन बोहराए ? इसलिए मौन पूर्वक वापस मुड़े। आखिर अपनी संसारी मौसी के घर गये / उन्होंने भी बहोराने के लायक अनेक वस्तुओं के नाम लिये, परन्तु महात्माने मस्तक हिलाकर इन्कार ही किया / तब मौसी से नहीं रहा गया और वे बोली - " इतनी सब वस्तुएं होने के बावजूद भी आप कुछ बहोरते नहीं तो क्या आपको राख बोहराऊँ ?..!" . महात्मा ने मस्तक हिलाकर सम्मति दी और राख बहोरने के लिए पात्र बाहर निकाला /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy