________________ 464 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 ___ मौसी के आश्चर्य एवं आनंद का पार नहीं रहा / उन्होंने प्रथम राख बोहरायी एवं उसके बाद दूसरी वस्तुएँ बोहरायीं / धन्य है ऐसे उग्र अभिग्रहधारी तपस्वी महा मुनियों को !... इन्हीं महात्मा ने 95 वी ओली के पारणे के मौके पर भोपावर में दि. 24-1-94 को मन में अभिग्रह धारा कि पू. गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री की उपस्थिति हो, 100 ओली के आराधक 5 तपस्वी हाजिर हो और एक ही दिन के नूतन दीक्षित 3 ठाणे (2 साधु तथा 1 साध्वीजी) उपस्थित हों तथा चतुर्विध संघ पारणे के लिए विनंती करता हो तोही पारणा करना !... इनके उत्कृष्ट पुण्य के योग से ऐसा विशिष्ट अभिग्रह भी एक ही दिन में दोपहर 4 बजे पूर्ण हुआ !... पूज्यश्री ने 5 वर्षों में 100 अळुम पूर्ण किये हैं / उसमें पूना में एक बार अठ्ठम के पारणे के मौके पर मन में संकल्पित अभिग्रह पूर्ण न होने पर उपवास चालु रखे / ग्यारह उपवास के बाद अभिग्रह पूर्ण होने पर पारणा किया !... 89 वी ओली ठाम चौविहार अवढ्नु आयंबिल से केवल बिना नमक के मुंग से पूर्ण की !..... ___ ओली सिवाय के दिनों में भी हर महिने कम से कम 2 उपवास, 5 आयंबिल तथा शेषदिनों में एकाशन होता ही है ! . ये महात्मा प्रतिदिन प्रातः कालमें नवकार-सूरिमंत्र आदि का जाप घंटों तक करते हैं / पुरिमड्ढ तक जाप पूर्ण करने के बाद ही पच्चक्खाण पारते हैं / गर्मी के विहारों में भी जाप पूर्ण होने तक पानी भी नहीं वापरते हैं / शाम को भी नियमित सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) पहले ही पाणहार का पच्चखाण स्वीकार लेते हैं / पूज्यश्री रोज त्रिकाल देववंदन करते हैं / बीमारी में भी दोनों समय खड़े खड़े अप्रमत्त रूप से प्रतिक्रमणादि क्रिया करते हैं / स्वभाव से अत्यंत सरल हैं। 11 वर्ष की उम्र में संयम ग्रहण करनेवाले यह महात्मा 6 वर्ष पहले मुनिवर में से आचार्य बने हैं। एक बार तो इनके दर्शन - वंदन