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________________ 462 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 197|| लगातार चौविहार 32 वर्षीतप के तपस्वी एक महान तपस्वी महात्मा पिछले 32 वर्षों से लगातार चौविहार उपवास से वर्षीतप कर रहे हैं / उसमें भी 10 वर्षीतप चौविहार छठ द्वारा किये / एक वर्षांतप चौविहार छठ के पारणे आयंबिल से किया और एक वर्षीतप चौविहार अठ्ठम के पारणे अठुम से किया ! 9 वर्ष की बाल्यावस्था में दीक्षित हुए इन महात्माने 28 वर्ष की उम्र से लगातार वर्षीतप करने का प्रारंभ किया था / वे अक्सर हस्तिनापुर में ध्यान शिविर चलाते हैं / दि. 13-4-94 चैत्र सुदि 3 को पालीताना में उनके दर्शन हुए थे / तब वे उपाध्याय पद पर विराजमान थे / . इनका शुभ नाम एक ऐसी ऋतु का नाम है, जो सभी को बहुत ही प्रिय है। इनके गुरु एक सुप्रसिद्ध आचार्य भगवंत थे, जिनके नाम का भी अर्थ "प्रिय" होता है / अब तो इस गुरु शिष्य की जोड़ी को पहचान ही गये होंगे ना ? 198|| लगातार 31 वर्षीतप के आराधक सूरीश्वर एक महात्मा पिछले 31 वर्षों से लगातार वर्षीतप करते हैं / परिणाम स्वरूप “तपस्वी रत्न" के रूप में सुप्रसिद्ध हैं / अभी वे करीब 30 साधु भगवंतों एवं करीब 220 साध्वीजी भगवंतों युक्त गच्छ का नेतृत्व संभालने वाले गच्छाधिपति आचार्य भगवंत हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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