________________ 459 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 ऐसी विशिष्ट मर्यादा है कि चैत्र माह में तीन दिन 'अचित्तरज उड्डावणी' का विशेष काउस्सग्ग किया गया हो, तो ही जोग आदि विशिष्ट क्रियाएँ कर सकते हैं और करवा सकते हैं / भूल से यह काउस्सग्ग रह गया हो तो यह सब कर और करवा नहीं सकते हैं / पू. आचार्य श्री का उस वर्ष यह काउस्सग्ग नहीं हुआ था / यदि यह बात आचार्यश्री किसी को नहीं करें तो उन्हें कोई पूछ नहीं सकता था / ऐसी बात यदि किसी को कहें तो भी वह कहेगा कि "ऐसी भूल तो हो जाती है, इसमें हर्ज नहीं / " परन्तु इसमें अन्य किसी को नहीं, किन्तु इनकी क्रियापात्र आत्मा को एतराज था / आचार्यश्री स्वयंने सामने से घोषणा की कि "इस वर्ष मेरा काउस्सग्ग करना रह गया है, इसलिए मैं नूतन दीक्षित को योगोद्वहन एवं बड़ी दीक्षा नहीं करवाऊँगा, बल्कि कुछ ही दिनों बाद दूसरे आचार्य महाराज पधारने वाले हैं उनके हाथों से सब कुछ होगा / " __क्रिया की ऐसी अभिरूचि, भूल के प्रति इतनी सजगता एवं निष्ठा अनुमोदनीय ही नहीं वंदनीय है। इन आचार्य भगवन्त के नाम का पूर्वार्ध अर्थात् अपने 8 आत्मप्रदेश, जिन पर कभी कर्मों का आवरण नहीं आता उनके लिए उपयुक्त होता शब्द, और उत्तरार्ध अर्थात् ज्योतिषी देवों का एक यह आचार्य भगवंत जिन समुदाय के हैं, उन आचार्य भगवंत का नाम अर्थात् संसार सागर पार करने का प्रायः सर्वमान्य सबसे सरल उपाय !... कहो ! कौन होंगे यह सूरि पुरंदर ?.... अनुमोदक : शासन सम्राट श्री के समुदाय के प. पू. आ. भ. श्री विजय शीलचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.