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________________ 458 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 तक लगातार जाप-ध्यान-आदि साधना वर्षों से कर रहे हैं / परिणाम स्वरूप इन्होंने दैवी तत्त्वों की कृपा भी अच्छी संपादन की है। इनकी कृपा से अनेक साधु साध्वीजी भगवंतों को प्रतिकूल संयोगों में बहुत ही सहायता मिली है। पूज्यश्री गोचरी की मांडली में भी सभी शिष्य प्रशिष्यादि को वात्सल्य भाव से गोचरी बाँटने के बाद ही स्वयं वापरते हैं / इनकी प्रेरणा से अनेक शासन प्रभावना के कार्य हुए हैं / एक विशिष्ट तीर्थ की स्थापना भी उनकी प्रेरणा का परिणाम है / पूज्यश्री के नाम का अर्थ 'सम्यक्ज्ञान का समुद्र" होता है। 38888888888888888888883 195/ वंदनीय क्रियापात्रता सुकृत का अभिमान मारता है / सुकृत की अनुमोदना तैराती है। . सुकृत किसी का भी हो, स्वयं का किया हो या अन्य का किया हो, उसकी अनुमोदना ही होती है, और इस अनुमोदना से आत्मा सौम्य, गुण पक्षपाती और बाद में गुणवान बनती है। यदि दूसरों के छोटे सद्गुण या सुकृत से हृदय में हर्ष न हो तो मानना कि अभी तक हम अवगुणी और गुणद्वेषी हैं और उसी कारण से भारे-कर्मी हैं / अपनी दृष्टि यदि खुली रखें तो अपने आसपास ही ऐसे कितने ही विशिष्ट गुणोंवाले व्यक्ति रहते हैं, जो दिखने में छोटे या अज्ञात होने के बावजूद भी उनकी करनी या विचारश्रेणी अनूठी ही होती है / यहाँ पर एक ऐसे ही प्रसंग विशेष की बात करनी है / एक आचार्य भगवन्त का प्रसंग है। उनके हाथों से एक कुमारिका की दीक्षा हुई थी। उन्हें उसके बाद उसे जोग करवाकर बड़ी दीक्षा प्रदान करनी थी / मुनिजीवन की एक
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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