________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 457 ऐसे समय नवकार, उवसग्गहरं और लोगस्स का जाप करने लग जाता हूँ। एक बार नवकार पूरा होता तब 'हं' बोलुं / एक उवसग्गहरं होने पर फिर 'हं', लोगस्स बोलने के बाद फिर 'हं', इस प्रकार तीनों ही सूत्रों का 50 - 100 - 150 जितना जाप हो जाता है / ऐसी निरर्थक बातें सुनने की या 'हाँ' देने की मुझे कहाँ फुसर्त है ?" पूज्यश्री एक एक पल को सार्थक और सफल करने के लिए हमेशा सावधान थे। . उपरोक्त प्रसंग जिनके जीवन में घटित हुए हैं, उन पूज्यश्री के नाम का अर्थ 'जगत में सूर्य के समान' ऐसा होता है / वास्तव में उन्होंने सम्यक्ज्ञान के अनगिनत तेज किरण विश्व में फैला कर अपने नाम को सार्थक किया है / पूज्यश्री के जीवन में ऐसे तो कई प्रसंग घटित हुए हैं / विशेष जिज्ञासुओं को उनके बारे में प्रकाशित हुआ आकर्षक स्मृति ग्रन्थ पढना ही होगा। 2885888 194/ गच्छाधिपति श्री की अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय क्रियानिष्ठता... नियमितता तथा वात्सल्य / एक महान शासन प्रभावक, गच्छाधिपति आचार्य भगवन्तश्री के जीवन में रही क्रियानिष्ठता ओर समय की नियमितता वास्तव में बहुत ही अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय है। उनके दर्शन वंदन करने हेतु प्रतिदिन सैंकड़ों भक्त आते रहते हैं। शासन के अनेक कार्य हेतु उनका मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद लेने के लिए कितने ही संघों के अग्रणी श्रावक आते रहते हैं / ... फिर भी उनकी प्रतिक्रमणादि दैनिक क्रियाओं में समय की पाबंदी बहुत ही अनुमोदनीय है / शाम को सूर्यास्त के समय उनकी प्रतिक्रमण की आराधना में 'श्रमणसूत्र" अवश्य ही चालु होता है / वे किसी भी परिस्थिति में इस बात में परिवर्तन नहीं करते हैं। पूज्यश्री रात्री में भी नियमित रूप से 2 बजे उठकर तीन घंटे