________________ 456 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 ही चाहिए / ये साधु क्या आलंबन लेंगे ? यहाँ घर नहीं, गच्छ चलाना है। तम्हारी दकान में सादी और सस्ती फेम हो तो ले आओ... यह तो तुम्हारी दुकान है इसलिए तुम्हें लाभ देता हूँ, जिससे क्रीतदोष न लगे।" पूज्यश्री की सादगी एवं दृढता देखकर वह भाई तो आवाक् रह गये / उन्होंने सादी फेम देकर महान लाभ लिया / ___ (6) पूरी रात बिल्कुल नहीं सोये : - पूज्यश्री नित्यक्रम अनुसार रात में चन्द्रमा के प्रकाश में लिखने बैठे थे / पूज्यश्री का जहाँ संथारा बिछाया हुआ था, उसके पास ही एक बालमुनि का संथारा था / बालमुनि नींद में सरकते सरकते पूज्यश्री के संथारे के पास आ गये / __ पूज्यश्री देर रात्री में सोने के लिए अपने संथारे के पास गये तो उसमें ज बालमुनि का हाथ था / बालमुनि को संथारे पर से नहीं उठाया... स्वयं वापस लिखने बैठ गये और प्रात:काल तक चांदनी के प्रकाश में लिखने का ही कार्य किया / पूरी रात बिल्कुल नहीं सोये / बालमुनि की नींद न बिगड़े इसलिए अपनी नींद का भोग दिया!!!.... (7) पल पल साध लेने की अद्भुत कला : पूज्यश्री महान जैनाचार्य थे, अत: किसी भी गाँव में प्रवेश होता तब सामने दूर तक कई लोग लेने आते / कई बार ऐसे श्रावक भी होते कि जो पूज्यश्री के आगे घर-संसार की या अपने गांव के किसी श्रावक की कथा शुरू कर देते / किन्तु पूज्यश्री को ऐसी दूसरों की पंचायत में बिल्कुल रूचि नहीं थी, इसलिए युक्ति पूर्वक उसकी बात उड़ा कर उसे भक्ति या ज्ञान की बात में जोड़ देते ... / कभी थकान के कारण बात करने का मुड़ पूज्यश्री में न होता और श्रावक की बातें चालु होती तब पूज्यश्री हं....हं करते रहते / / पूज्यश्री ने एक बार मुनिवरों के आगे इसका रहस्य खोला : “मैं