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________________ 455 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 सं. 2023 की साल के जेठ महिने का यह प्रसंग है / प्रात:काल में घाटकोपर से विहार करके मुलुंड जाना था / विहार की तैयारी चल रही थी / उतने में पूज्यश्री की दृष्टि अपनी तरपणी पर गयी / “मेरी तरपणी की टोक्सी (पात्री) कैसे बदली हुई लग रही है ?" "हाँ जी गुरू देव ! आपकी टोक्सी नमूने के रूप में बताने के लिए एक श्रावक को दी है, आज आ जाएगी" "कब दी ?" "कल सुबहमें "सुबहमें" उसका पडिलेहण हो गया था ?"... "हाँ जी..." "दो पहर को उसका पडिलेहण किसने किया? टोक्सी का पडिलेहण रह जाये, यह चलता होगा ? पूछना तो चाहिए था न ?" पूज्यश्री के हृदय में येक्सी का एक समय का पडिलेहण रह जाने का इतना दुःख हुआ कि 14 कि.मी. का विहार करके भी सख्त गर्मी में उसी दिन प्रायश्चित्त के रूप में चौविहार उपवास का पच्चक्खाण कर लिया / कैसी पापभीरूता / कैसा संयम !!! (5) जिसका जीवन सादा उसका नाम साधु : . एक दिन पूज्यश्री का चश्मा टूय / चश्मा नया बनाने की बात का पता चलते ही एक गुरुभक्त तुरन्त हाजिर हो गये / “गुरूदेव ! आपके चश्मे का लाभ मुझे दो / " "किन्तु फेम कैसी लाओगे ?".. "अच्छी से अच्छी, कीमती से कीमती ...," तो तुम्हें लाभ नही देता / मुझे तो साधारण से साधारण फेम चाहिए / "... किन्तु आप श्री तो जैन शासन के महान प्रभावक आचार्य हो / 200 शिष्यों-प्रशिष्यों के गुरू हो, महाज्ञानी हो, गोल्डन फेम चमकती हो तो प्रभाव पड़े / और मुझे चश्मा . खरीदना तो है नहीं, घर की 6 दुकाने हैं / " उस श्रावक ने, कितने ही साधुओं तथा अन्य श्रावको ने भक्ति से अच्छी से अच्छी फेम के लिए पूज्यश्री पर खूब दबाव डाला / अब पूज्यश्री नाराज हो गये / उन्होंने दृढ स्वर में कह दिया / "तुम्हें भक्ति करनी है या कमबख्ती ? साधुजीवन में सादगी
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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