________________ 452 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 जिनालयों, तीर्थों, उपाश्रयों, धर्मशालाओं, ज्ञानसत्रों, अधिवेशनों, दीक्षाएँ, प्रतिष्ठाएँ, अंजनशलाकाएँ आदि के द्वारा अद्भुत शासन प्रभावना की / परिणाम स्वरूप श्री संघने एवं समाजने उन्हें कई उपाधियों से अलंकृत किया फिर भी उनके जीवन में अहंकार नाम मात्र का भी दृष्टिगोचर नहीं होता था / पूज्यश्री छ'री' पालित संघों के दौरान दो - दो बार मरणान्त दुर्घटना की संभावना से दैवी प्रभाव से अद्भुत रूपसे बच गये थे। आखिर कर्मसत्ता को लगा कि अब इस महान आत्मा ने अपनी संसार रूपी दुकान को सिमटने की पूरी तैयारी कर ली, इसलिए अपनी शेष राशि जल्दी वसूल करने के लिए पूज्यश्री की कमर में असाध्य एवं असह्य रोग का परिषह उत्पन्न कर दिया / तब पूज्यश्री भयंकर वेदना के बीच भी परमात्माको वन्दना करने में नहीं चूकते थे / कभी रात में नींद उड जाती तब, "मुझे प्रतिक्रमण करवाओ ... पडिलेहन करवाओ" इत्यादि बोलते / शिष्य कहते कि, "गुरुदेव / प्रतिक्रमण - पडिलेहण करा लिया है / " तब पूज्यश्री कहते कि, "मेरा उपयोग उस समय बराबर नहीं था, मुझे वापस करवाओ / "बड़ी उम्र में भी पूज्यश्री दोनों समय खड़े खड़े शिष्यों के साथ मंडली में ही प्रतिक्रमण करते थे !! ऐसे - ऐसे अनेक 'गुणों के भंडार यथार्थनामी' पूज्यश्री के गुणों का वर्णन एक छोटे से लेख द्वारा किस प्रकार हो सकता है ? इसके लिए तो पूज्यश्री की विदाय (सं. 2045 आसोज वदि 30) के बाद प्रकाशित स्मृतिग्रन्थ का अवगाहन करना ही चाहिए / प्रिय वाचकों / अब तो पहचान ही गये होंगे कि ये पूज्यश्री कौन होंगे ? पूज्यश्री के चरणों में अनंतश वंदना /