________________ 451 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 समता-क्षमा : कभी कोई उनका विरोधी या विघ्नसंतोषी सार्वजनिक सभा में उनकी उपस्थिति में उनके विरुद्ध कुछ भी बोलता या विरोध पत्रिका छपवाता तो भी उसका विरोध या प्रतिकार नहीं करते हुए, 'सामने वाला बने आग तो तुम बनना पानी, यह है प्रभु वीर की वाणी' ... आदि सुवाक्यों को जीवन में आत्मसात् करके समता ही रखते / परिणाम स्वरूप पूरी सभा पूज्यश्री की अद्भुत क्षमा और समता देखकर आश्चर्य और अहोभाव के साथ पूज्यश्री पर फिदा हो जाती थी। .. मितव्ययिता : अनेकविध रचनाएँ एवं पत्र व्यवहार के लिए भी पूज्यश्रीने अपने नाम की लेटरपेड़ छपवाने की शिष्यों को कभी संमति नहीं दी / इतना ही नहीं पूज्यश्री आनेवाले पत्रों के लिफाफे खोलकर उनके अन्दर के भाग का उपयोग रचनाएँ बनाने एवं पत्रों का जवाब देने के लिए करते थे। बीमारी के समय पर भी पूज्यश्री प्रायः एलोपथी दवा से दूर रहते और अधिकतर मिट्टी, पानी, आटा, थूक, शिवाम्बु या चावल जैसे एकदम सरल एवं निर्दोष उपचार करते / एक बार पूज्यश्री रातमें लघुशंका करने उठे, तब अंधेरे में ठोकर लगने से पैर के अंगुठे से खून की धारा बह निकली / फिर भी पूज्यश्री ने अपने किसी शिष्य को नहीं उठाया और पानी की पट्टी बाँधकर अपने नित्यक्रम में लग गये / प्रातःकालं उपाश्रय में खून के दाग देखकर शिष्यों के पूछने पर खुलासा किया / शिष्योंने पूछा कि - "गुरूदेव ! हमें क्यों नहीं उठाया ?" तब पूज्यश्रीने सहजता से कहा कि - "अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारे आराम में क्यों अन्तराय (बाधा) डालना ऐसा सोचकर तुम्हें नहीं उठाया / गुरुदेव की ऐसी सहनशीलता और परहितचिन्ता देखकर शिष्य पूज्यश्री के चरणों में झुक पड़े ! _ शासन प्रभावना : पूज्यश्री ने रात दिन अप्रमत्तता जन्य से पुरुषार्थ कर जैसे बिंदु में से सिंधु का नवसर्जन करना हो वैसे सम्यक्ज्ञान के लिए दो दो विद्यापीठों की स्थापना, मुंबई से समेतशिखरजी और शिखरजी से पालीताना के दो विराट ऐतिहासिक छ'री' पालित पदयात्रा संघ, अनेक