________________ 450 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 की / इसी प्रकार पूज्यश्री ने भाववाही स्तवन चौवीसी सहित अनेक स्तवनों, स्तुतियों, चैत्यवंदनों एवं पूजाओं आदि की रचनाएँ अनेक शासन प्रभावक प्रवृत्तियों के बीच में से समय निकालकर की / पूज्यश्री ने गुरू कृपा से चातुर्मास में प्रतिदिन दो बार व्याख्यान एवं वयोवृद्ध दादा गुरुदेव की हर प्रकारकी सेवा करने के बावजूद भी एक ही चातुर्मास में 11 अंगसूत्रों का वांचन अपने आप किया था / दर्शन शुद्धि : उनके हृदय में तीर्थंकर परमात्मा एवं उनके शासन के प्रति अद्भुत भक्ति और समर्पण भाव था / उसी प्रकार उनको जिनशासन की वर्तमान परिस्थिति देखकर बहुत ही दुःख होता था / सभी गच्छों में प्रेम, मैत्रीभाव और एकता स्थापित हो उसके लिए आप कई आचार्य भगवंतों से मिलकर विचार विनिमय करते / आपने कई बार इस कार्य के लिए आवश्यकता पड़ने पर अपनी आचार्य की पदवी छोड़ने की सार्वजनिक प्रवचनों मे घोषणा की .... / . अप्रमतत्ता : पूज्यश्री 24 घंटों में मुश्किल से 3 घंटे आराम करते। रात में 12 बजे उठकर जाप आदि आराधना-साधना में लग जाते / पूज्यश्री दीवार आदि का सहारा कभी भी नहीं लेते थे / पूज्यश्री ने अन्तिम कुछ महिनों को छोड़कर प्रतिदिन पंच परमेष्ठी भगवंतों को 108 खमासमणा देकर वंदना की थी !!! सादगी : कभी शिष्य भक्ति से नये कपड़े पहनने का आग्रह करते तब वे कहते कि सादगी ही साधु का वास्तविक आभूषण है / साधु तप संयम और सादगी के ही आभूषणों से शोभायमान होता हैं / साधु के लिए दूध जैसे नये कपड़े पहनने हितावह नहीं है / जब जीर्ण हुए वस्त्र के बदले में नूतन वस्त्र पहनने का मौका आता तब वे जान बुझकर उस वस्त्र को मरोड़कर फिर ही पहनते !!! निरभिमानीता : पूज्यश्री कभी किसी साधु को उसकी भूलके कारण उपालंभ देते तो शाम को प्रतिक्रमण की मंडली के समय सभी साधुओं की अपस्थिति में उस छोटे साधु को खमाने में बिलकुल नहीं हिचकते थे।