________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 . 449 अत्यंत गर्म तैल शरीर के ऊपर गिर गया / असह्य वेदना हुई, किन्तु इन्होंने एकाशन का अभिग्रह नहीं छोड़ा। तपश्चर्या : आखिर 3 वर्ष एकाशन करने के बाद आपको दीक्षा लेने के लिए आज्ञा मिली / पूज्यश्री पर जब संयम लेने के बाद एकाशन छोड़ने का दबाव आया तब उन्होंने दृढता से कहा कि "गृहस्थ जीवन में एकाशन किये तो साधु जीवन में एकाशन कैसे छोड़े जा सकते हैं ?" और उन्होंने दीक्षा के बाद 43 वर्ष तक एकाशन चालु रखे / पूज्यश्री को इतने में ही संतोष नहीं हुआ और अपनी अन्तिम अवस्था में लगातार 8 वर्षीतप किये ! ... शिष्य एवं भक्त विनंती करते कि, - "साहेबजी! आपको शासन के कई कार्य करने हैं, और आप अब वृद्ध भी हो गये हैं, इसलिए आप वर्षीतप नहीं करो तो अच्छा / " तब पूज्यश्री कहते कि, "मैं लम्बे समय तक जीवित रहूं, इसलिए तुम तपश्चर्या छोड़ने की बात करते हो तो, ऐसी बात लेकर फिर कभी मेरे सामने मत आना / तपश्चर्या से ही द्रव्य-भाव आरोग्य अच्छा रहता है / गच्छाधिपतिश्री की ऐसी प्रेरणा से उनके समुदाय में कई विशिष्ट तपस्वी महात्मा पके हैं / पूज्यश्री के एक वर्षीतप का पारणा राष्ट्रपति ज्ञानी झैलसिंहने इक्षु रस बहोरा कर करवाया था / वे स्वयं चाय नहीं पीते थे और कोई भी मुमुक्षु दीक्षा लेने के लिए आता उसे चाय छुड़ा देते थे। . ज्ञानोपासना : पूज्यश्री तीव्र ज्ञान पिपासा के कारण पंडित की बहुत कम समय के लिए सुविधा मिलने के बावजूद भी संस्कृत व्याकरण आदि का बहुत सुन्दर रूप से अभ्यास किया इतना ही नहीं संस्कृत में गद्य पद्य अनेक रचनाएँ भी की / फिर भी उन्हें ज्ञान का बिलकुल अभिमान नहीं था / विनय-वैयावच्च के द्वारा गुरू के हृदय में ऐसे बस गये थे, कि केवल पाँच वर्ष के दीक्षा पर्याय में गुरूदेव श्री ने आपको उपाध्याय पद प्रदान किया / .. _ पूज्यश्री ने संस्कृत में लघु त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, समरादित्य केवली चरित्र, श्रीपाल चरित्र, द्वादश पर्वकथा संग्रह इत्यादि सुन्दर रचनाएँ बहुरत्ना वसुंधरा - 3-29