________________ 448 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 किया है, इसी प्रकार अन्य कई आत्माओं को चारित्र पद का एक करोड़ जाप करने का अभिग्रह भी दिया है / - इन महात्मा की गिरनार मंडन आबालब्रह्मचारी श्री नेमीनाथ भगवान के ऊपर अनन्य श्रद्धाभक्ति है / अभी वे अपने दीक्षा से पूर्व के 20 वर्ष के हिसाब से, हर पक्खी को 1 उपवास या 2000 गाथा का स्वाध्याय के अनुसार 12 लाख गाथा का स्वाध्याय कर रहे हैं / सागर समुदाय के इस महात्मा का नाम भगवान श्री महावीर के 11 गणधरों में से एक गणधर भगवंत के नाम के जैसा ही है / मुनिवर की प्रभुभक्ति आदि रत्नत्रयी की आराधना की हार्दिक अनुमोदना / 192|| यथार्थनामी गच्छाधिपति श्री की गुण गरिमा 13 वर्ष की छोटी उम्र में चेचक के रोग से मूच्छित (मृतप्रायः) हो गये बालक को उसके माता-पिता आदि कुटुंबीजन मृत समझकर भारी हदय से स्मशान यात्रा की तैयारी करने लगे / परन्तु इस बालक के हाथ से जैन शासन के अनेकों काम आगे जाकर होने वाले थे, इसलिए थोड़ी देर में सहज रूप से उसका अंग स्फुरित हुआ / परिवारजनों ने योग्य उपचार करवाया / छह महिने की गंभीर बीमारी के बाद स्वस्थ होने पर उसको संसार से वैराग्य हो गया / उसने तप-त्याग, सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध आदि आराधना करके एवं अन्यों को करवाकर वैराग्य को पुष्ट किया। अन्त में दीक्षा की आज्ञा न मिले तब तक एकाशन करने का प्रारम्भ किया / सहनशीलता : एकबार मातृश्री को रसोई में सहायता करते समय