________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 447 की वृद्धावस्था में यात्रा की थी; तब भी उजाला होने के बाद ही यात्रा प्रारम्भ करके नौ ट्रंकों के दर्शन एवं मुख्य जिनालय में चैत्यवंदन करते हुए 12 बजे दादा के दरबार में पहुँचे / वहाँ भी स्तुति - स्तवन में लीन बनकर सवा दो बजे बाहर आये और घेटी पाग गये / वहाँ प्रत्येक मन्दिरमें दर्शन - चैत्यवंदन कर नीचे उतरे और साढे तीन बजे पच्चक्खाण पाला !!! व्याख्यान वाचस्पति इत्यादि अनेक बिरुदों से अलंकृत उन्होंने कई शासन प्रभावक कार्य किये थे। पूज्यश्री का नाम वर्तमान अवसर्पिणी कालमें भरत क्षेत्र में हुए 9 बलदेवों में से एक सुप्रसिद्ध बलदेव का नाम है / ... पूज्यश्री की जिन भक्ति-तीर्थ भक्ति की हार्दिक अनुमोदना / पूज्यश्री के पट्टधर आजीवन गुरुचरणसेवी आचार्य भगवंत आज गच्छाधिपति के पद पर हैं। उन्होंने भी अपने गुरुदेव श्री के साथ प्रत्येक प्रभुजी को 3-3 खमासमण दिये हैं / सिद्धगिरि तथा अहमदाबाद के सभी जिनबिम्बों के समक्ष चैत्यवंदन // एक मुनिवर ने श्री सिद्धगिरिजी महातीर्थ ऊपर एवं पालीताना के तमाम जिनालयों में रहे आरस के छोटे बड़े हजारों जिनबिंबो के समक्ष विधिपूर्वक चैत्यवंदन किया है / ___ उसी प्रकार इस महात्मा ने अहमदाबाद के 348 जिनालयों में रहे आरस के तमाम जिनबिंबों के समक्ष भी विधिपूर्वक चैत्यवंदन करके व्यवहार समकित को निर्मल बनाया है। उनकी प्रेरणा से पाँच बालकों ने अहमदाबाद के सभी जिनमन्दिरों के सभी भगवानों की पूजा की है / उन्होंने "ॐ ह्रीं नमो चारितस्स" पद का एक करोड़ बार जाप