________________ 446 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 हो जाते हैं / उदाहरण के रूपमें इनकी निश्रामें होती प्रभु प्रतिष्ठा के दौरान जिनालय में होता घंटों तक अमीझरण ! पूज्यश्री जहाँ से गुजरे वहाँ जमीन पर कभी केसर के पदचिह्न .... इत्यादि / लगभग 450 साधु-साध्वीजी भगवंत इनकी आज्ञा में हैं / अनेक शासन प्रभावना के कार्य इनकी निश्रा में सहजरूप से चालु ही रहते हैं। तो भी पूज्यश्री कभी भी अपनी आत्म साधना को गौण नहीं करते हैं / व्यवहार एवं निश्चय के अद्भुत संगम रूपी आचार्य श्री मुश्किल से 23 घंटे आराम करते हैं / इनके दोनों पुत्र भी शासन के कार्यों में सुन्दर सहयोग दे रहे हैं। अध्यात्मयोगी, अप्रमत आचार्य भगवंत श्री की आत्म साधना की हार्दिक अनुमोदना के साथ भावभीगी वंदना / 8888888 190 | सिन्दगिरि आदि के प्रत्येक जिनालय में प्रत्येक प्रभुजी को खमासमण द्वारा वंदना लगभग 8 वर्ष पूर्व कालधर्म को प्राप्त हुए एक गच्छाधिपति आचार्य भगवंतश्री ने श्रीसिद्धगिरिजी महातीर्थ में विराजमान लगभग 22000 जिनबिंबों को तीन तीन खमासमण देकर वन्दना की थी ! उन्होंने इसी प्रकार अहमदाबाद के सभी जिनालयों में विराजमान पाषाण के सभी जिनबिम्बों को खमासमण देकर वंदन किया था / पूज्यश्री गुजरात, मारवाड़, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, कच्छ वगैरह में जहाँ कहीं भी विचरे, वहाँ के सभी जिनालयों के पाषाण के सभी जिनबिम्बों को 3-3 खमासमण द्वारा उन्होंने वंदना की। पूज्यश्रीने दो बार विधिपूर्वक सिद्धगिरिजी की 99 यात्राएँ की थीं, तब भी गिरिराज पर कभी भी आहार या नीहार नहीं किया था / पानी भी जहाँ तक संभव होता गिरिराज पर नहीं पीते थे / अन्त में 95 वर्ष