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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 445 189| अध्यात्मयोगी आचार्य भगवंत श्री / ये आचार्य भगवंत आज 'अध्यात्मयोगी' के रूपमें जैन शासन में सुप्रसिद्ध हैं। इनकी ध्यान योग की प्रवृत्ति देखते ऐसा ही लगता है जैसे जैन साधना में लगभग भूला दी गयी ध्यान साधना के मार्ग को पुनः चालु करने के लिए वे स्वयं का अनुभव एवं स्वयं के उपर प्रयोग द्वारा जोरदार प्रयत्न कर रहे हैं / जब वे तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमा के सामने ईश्वर प्रणिधान में उतर जाते हैं, तब तो आराम, आहार और स्थल काल के भेद को भूल गये हों; वैसा भव्य ओर प्रेरक दृश्य देखने को मिलता है। इन्होंने आहार लेने की प्रवृत्ति पर एवं स्वाद पर आश्चर्यप्रद और प्रेरणाप्रद विजय प्राप्त की है / इन्होंने अपनी धर्मपत्नी और दो संतानों के साथ संयम अंगीकार किया था / गृहस्थ जीवन में भी दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूपी रत्नत्रयी की साधना की ओर मुड़ गये थे, और दीक्षा लेने के बाद यह आराधना अत्यंत अंत:स्पर्शी, मर्मग्राही और व्यापक बनी है। अजातशत्रु और अध्यात्मयोगी के रूप में सुप्रसिद्ध हो गये पंन्यासजी भगवंत के सानिध्य में बहुत समय तक रहकर उनके मार्गदर्शन के अनुसार इन्होंने ध्यान साधना में बहुत प्रगति की / आपको व्याख्यानादि के समय जब पंन्यासजी भगवंत के साथ पाट पर बैठना होता, तब आप रत्नाधिक ऐसे पंन्यासजी भगवंत को बीच में बिठाते और स्वयं आचार्य होते हुए भी उनके पास में बैठते / कैसी अद्भुत विनय नम्रता - लघुता !!! ___इनके जीवन में बालक जैसी निर्दोषता, ध्यान योग की साधना और समर्पित भाव से शोभायमान परमात्म भक्ति आदि अनेक विशेषताओं के प्रभाव से अनेक ऐसी घटनाएं घटती हैं, कि लोग देखकर अचंभित
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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