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________________ 444 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 कर्तव्य अदा करते हैं / उनके जीवन में इस प्रकार व्यवहार और निश्चय का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है / वे बैठने के लिए कभी भी चटाई का उपयोग नहीं करते हैं / आगे के दिनों का विहार किसी भी श्रावक या शिष्यों को भी नहीं बताते हैं / जब भी विहार करना होता है, तब उठकर रवाना हो जाते हैं / इसी प्रकार चातुर्मास का स्थल भी पहले से घोषित नहीं करते हैं। वे जहाँ अषाढ सुदि में होते हैं वहीं चातुर्मास के लिए स्थिर हो जाते हैं। अपने आज्ञानुवर्ति साधु-साध्वियों को, वे जहाँ जहाँ होते हैं वहाँ चातुर्मास के लिए आज्ञा वहाँ के संघ के आगेवान जब आषाढ सुद में विनंती करने आते हैं तब उनके द्वारा दे देते हैं / जिज्ञासु वाचक उनके जीवन की अनेक घटनाओं तथा संपूर्ण जीवन चरित्र को कोबा (जि. गांधीनगर) से ई. स. 1991 के जुलाई अगस्त महिने में प्रकाशित हुए 'दिव्य ध्वनि" विशेषांक एवं इन्दोर से प्रकाशित हुए “तीर्थंकर" मासिक के विशेषांक के द्वारा जानकर अपनी जिज्ञासाओं को शान्त कर सकते हैं। - पूज्यश्री अधिकतर मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में विचरण करते हैं। उन्होंने सं. 2053 में सुरत के पास महुवा गाँव में चातुर्मास किया था। उन्होंने चातुर्मास के बाद गिरनार एवं पालिताना की यात्रा कर पुनः मध्यप्रदेश की ओर प्रस्थान किया / उनके नाम का पूर्वार्ध एक ऐसे ढाई अक्षर के धन का सूचन करता है जिसको चोर चोरी नहीं कर सकते हैं / राजा ले नहीं सकते। भाई बंटवारा नहीं करवा सकते हैं / जिसका जितना उपयोग करते हैं वह उतना बढता जाता है / तथा उत्तरार्ध का अर्थ समुद्र होता है /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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