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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 443 इस विद्यासागर के भी पार बहुत दूर... ! दूरातिदूर .... ! पहूँच गया हूँ। विद्या-अविद्या से परे .... ध्यान-ध्येय, ज्ञान ज्ञेय से परे .... भेदाभेदखेदाखेद से परे, उसका साक्षी बनकर उद्ग्रीव उपस्थित हूँ अकम्प निश्चल शैल, चारों ओर छायी है सत्ता.... महासत्ता .... सब समर्पित-अर्पित स्वयं अपने में !!! आप ऐसे स्वानुभूति सम्पन्न प्रखर आत्म साधक होने के साथ साथ विशिष्ट कक्षा के साहित्यकार विद्वान और शीघ्रकवि भी हैं / आपकी कृतियों में “मूक माटी" नाम के आध्यात्मिक महाकाव्य ने बहुत ही प्रसिद्धि और प्रशंसा प्राप्त की है / उसके अलावा पाँच काव्य संग्रह, 22 प्रवचन संग्रह पुस्तकें, समयसार इत्यादि संस्कृत - प्राकृत के करीब 20 ग्रन्थों का हिन्दी में पद्यानुवाद, निजानुभव शतक वगैरह हिन्दी तथा संस्कृत भाषा में 7 शतक तथा अन्य करीब 21 काव्यमय रचनाएँ आत्मार्थी जीवों एवं विद्वानों में अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं / My Self नामकी अंग्रेजी काव्य रचना एवं बंगाली भाषा में भी उन्होंने दो काव्य रचनाएं की हैं / इतनी साहित्य रचनाएँ तथा नियमित शिष्यों तथा मुमुक्षुओं को शास्त्र वाचना देने के बावजूद भी वे अपनी दैनिक 6 - 7 घंटे की ध्यान साधना को चातुर्मास या शेषकाल में कभी भी गौण नहीं करते हैं, यह उनकी खास विशेषता है / __ उनके माता-पिता, दो बहिनों एवं दो छोटे भाइयों ने भी दीक्षा अंगीकार की है, किन्तु आचार्य श्री उनके प्रति भी एकदम ममत्व भाव नहीं रखते हैं / उनके एक लघुबन्धु शिष्य भी उनके जैसे ही प्रखर आत्मसाधक हैं। उनकी कठोर चारित्र पालन और विशिष्ट कोटि की विद्वत्ता वत्सलता आदि गुणों से आकर्षित होकर कई उच्चशिक्षित युवकों ने उनके पास दीक्षा अंगीकार की है / विशिष्ट साहित्यकार होने के कारण अनेक विद्वानों के पत्र उनको आते रहते हैं / परन्तु वे स्वयं कभी पत्र लिखते या पढते नहीं हैं / वे आये हुए पत्रों को खोलते या फाड़ते भी नहीं हैं / उनके एक शिष्य यह
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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