________________ 442 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 एक बार चातुर्मास के दौरान पूज्यश्री लगातार 33 घंटे तक खड्गासन में (खड़े खड़े) ध्यान में लीन रहे थे। उन्होंने इतने लम्बे समय तक भूख-प्यास-निद्रा-थकान-लघुशंका, बड़ीशंका आदि शारीरिक बाधाओं पर अद्भुत विजय प्राप्त कर लिया था ! उन्होंने दीक्षा के दिन से यावज्जीव तक नमक, मिर्च, तेल और शक्कर का त्याग किया है। बाद में तमाम फलों का भी हमेशा के लिए त्याग किया है / यावज्जीव ठाम चौविहार एकाशन होने के बावजूद वर्ष में 40-50 चौविहार उपवास भी करते हैं / उनको ऐसे विशिष्ट तप-त्याग और ज्ञान-ध्यान के साथ गुरूकृपा से समयसार ग्रन्थ का चिंतन मनन निदिध्यासन करते करते विशिष्ट आत्मानुभूति हुई थी / यह बात उन्हीं के शब्दों में पढ़ें / ___ "मुनि - दीक्षा के पश्चात् पावन बेला में, परम पावन, तरण तारण गुरूचरण के सान्निध्य में ग्रन्थराज 'समयसार' का चिन्तन-मनन अध्ययन यथाविधि प्रारंभ हुआ / ___ अहो ! यह भी गुरू की गरिमा-महिमा कि कन्नड़ भाषा भाषी उन्होंने मुझे अत्यंत सरल, सुमधुर भाषा शैली में समयसार के हृदय को खोल खोलकर बार बार दिखाया/प्रति गाथा में अमृत ही अमृत भरा है .. और मैं पीता ही गया ... पीता ही गया ... ! माँ के समान गुरवर अपने अनुभव और मिलाकर, घोल घोलकर, पिलाते ही गये, पिलाते ही गये / मुझे.... शिशु.. बालमुनि को फलस्वरूप उपलब्धि हुई अपूर्व विभूति की - आत्मानुभूति की और अब समयसार ग्रन्थ, ग्रन्थ (परिग्रह) प्रतीत हो रहा है // पीयूष भरी गाथाओं के रसास्वाद में डूब जाता हूँ कि उपर उठता हुआ, उठता हुआ, उर्ध्व गममान होता हुआ, सिद्धाचल को पार कर गया हूँ ... सीमोल्लंघन कर गया हूँ !!! अविद्या कहाँ ? कब सरपट भाग गयी, पता नहीं रहा / आश्चर्य यह है कि जिस विद्या की चिरकालीन प्रतीक्षा थी