________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 441 पास विशालकाय आदिनाथ भगवंत की प्रतिष्ठा अंजनशलाका भी पूज्यश्री के वरद हस्तों से हुई है / - उनके पवित्र नाम में परमात्मा के साकार एवं निराकार दोनों स्वख्यों का समावेश होता है। उनके गुरुदेव श्री भी " खाखी महात्मा" के रूपमें प्रख्यात आचार्य भगवंत थे / __ अब तो पहचान गये न इस गुरू शिष्य की बेजोड़ जोड़ी को? यदि जीवन में एकबार भी इनके दर्शन न किये हों तो जब तक इनके दर्शन का लाभ न मिले, तब तक एकाध वस्तु के त्याग का संकल्प करोगे ना ? धन्यवाद ! लगातार 33 घंटे तक ध्यान मुद्रा में स्थिर रहते आत्मज्ञानी आचार्य श्री / / (सांप्रदायिक पूर्वग्रह से मुक्त होकर, गुणग्राही दृष्टि से, प्रमोद भावना पूर्वक यह दृष्टांत पढने की विनंती है / ) 22. वर्ष की भर युवावस्था में सं. 2025 में दिगंबर मुनि-दीक्षा अंगीकार करके अप्रमत रूप से ज्ञान-ध्यान की विशिष्ट साधना और विनयवैयावच्च आदि अनेक सद्गुणों की योग्यता के कारण गुरू द्वारा मात्र चार वर्ष के दीक्षा पर्याय में (26 वर्ष की छोटी उम्र में) आचार्य पद पर आरूढ किये गये इन महात्मा की साधना की बातें वर्तमानकाल में हमें आश्चर्यचकित करनेवाली हैं। प्रतिदिन तीनों समय दो ढाई घंटे (कुल 6-7 घंटे) तक नियमित रूप से ध्यान मुद्रा में स्थिर होकर आत्मानुभव के लिए साधना करते यह महात्मा कभी कभी निर्जन गुफा वगैरह में घंटों तक खड़े खड़े कायोत्सर्ग मुद्रामें बिना हिले स्थिर रहते हैं /