________________ 440 बहुरत्ना वसुंधरा :- भाग - 3 187/ 250 चौविहार छठ, प्रत्येक छठु में श्री सिद्धगिरि को सात - सात यात्राएँ / -- एक गच्छाधिपति आचार्य भगवन्त ने अपने जीवन में 250 से अधिक बार चौविहार छठ करके प्रत्येक छछमें सिद्धाचल महातीर्थ की सात सात यात्राएं की हैं !!! क्यों, अचंभित हो गये न यह पढकर ? किन्तु यह कोई प्रथम संहनन वाले चौथे आरे की बात नहीं है / दूर या नजदीक के भूतकाल की भी बात नहीं है / ये आचार्य भगवंत आज हाजिर हैं / आप चाहो तो जरूर उनके दर्शन वंदन का महालाभ ले सकते हो / वर्षों पूर्व गृहस्थावस्था में जब क्षयरोग (टी. बी) के कारण बचने की आशा नहीं थी; तब वे अन्तिम श्वास छोड़ने के लिए श्री सिद्धाचलजी आये / इन्होंने चौविहार छठ्ठ करके सात यात्राएँ की और क्षय अदृश्य हो गया। नया जीवन मिला / उसी समय संयम ग्रहण करने का संकल्प किया और उसके अनुसार कम समय में संयम स्वीकार कर आज गच्छाधिति के पद पर विराजमान हैं / स्वयं को नवजीवन देने वाली श्री सिद्धाचलजी महातीर्थ की चौविहार छठ के साथ सात यात्राएँ इन्होंने बार बार उत्कृष्ट भावों से चालु ही रखीं / परिणाम स्वरूप इन्होंने आज विश्व रिकार्ड कह सकें वैसी उपर्युक्त सिद्धि संप्राप्त की है / गच्छाधिपति आचार्य पद पर विराजमान होने के बावजूद पूज्यश्री की नम्रता एवं सादगी ऐसी अद्भुत है कि सामान्यतः व्याख्यान या चातुर्मास में रात को संथारे के सिवाय पाट का प्रायः उपयोग नहीं करते हैं / पूज्यश्री नीचे ही बैठते हैं / वस्त्र भी अत्यंत सादगी युक्त सामान्य मुनि जैसे ही लगते हैं / स्वभाव भी खूब सरल है। ___सं. 2054 में पूज्यश्री की पावन निश्रा में जाखोड़ा तीर्थ (राजस्थान) से शिखरजी महातीर्थ का छ'री' पालित महान संघ निकला था। सिद्धाचल शणगार ढूंक तथा घेटी पगला के पीछे आदपर गाँव के