________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 439 . (2) मुनि जीवन में श्री सिद्धगिरिजी की 1800 यात्राएँ 9 बार 99 यात्रा पूर्वक की / 10 बार छठ कर सात यात्राएँ की / (3) श्री गिरनार की 33 दिन में 108 यात्राएँ की / अठ्ठम कर 11 यात्राएं की। (4) श्री कदंबगिरिजी तथा तलाजा की 108 यात्राएँ / (5) सुरत-कतार गाँव की तथा अहमदाबाद हठीभाई की बाड़ी में विराजमान श्री धर्मनाथ प्रभु की 99 यात्राएँ / यह है, उनका संयम के प्रति आदर : (1) जिनाज्ञा एवं गुरु आज्ञा की अनन्य उपासना / (2) संयम शुद्धि के लिए पिंडेषणा की अजीब जागृति / मनोनिग्रह एवं इन्द्रियनिग्रह के लिए विविध कठीन अभिग्रह / ___(3) निःस्पृहवृत्ति, निरभिमान और आडम्बर रहित जीवन के साथ सरलताभरे बाह्य आभ्यंतर जीवन की पालना / (4) क्रोधादि कषाय भाव से अलग रहने की आश्चर्यप्रद चित्तवृत्ति। (5) कहीं किसी अशुभ कर्म का बंध न हो जाये, इसीलिए रत्नत्रयी की साधना का लक्ष्य / / (6) पूज्यश्री ने गृहस्थ जीवन में अल्पायु वाली एक संतान की प्राप्ति होने के बाद 30 वर्ष की उम्र में सजोड़े ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया / ऐसे महातपस्वी सूरीश्वरजी को अनंतशः वन्दना / . उनके नाम में उत्तरार्ध का दर्शन करके पूर्वार्ध विकसित होता है !.. * उनके गुरुदेव "प्राकृत विशारद" और "धर्मराजा" के रूप में सुप्रसिद्ध आचार्य भगवंत थे /