________________ 438 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 आयंबिल तप की साधना : (1) श्री वर्धमान तप की 100 + 73 ओलियाँ / (2) श्री नवपदजी की 131 ओलियाँ / (3) दो बार लगातार 500 आयंबिल / (4) वर्धमान तप की 8 6-87 वी ओली के ऊपर सिद्धितप / (5) वर्धमान तप की 91 वी ओली के ऊपर मासखमण / (6) वर्धमान तप की 100 वी ओली का पारणा 16 उपवास पूर्वक किया / (7) 20 वर्ष तक गुरुचरण में रहकर चातुर्मास में चातुर्मास प्रवेश के दिन से लेकर चातुर्मास के क्षेत्रमें से विहार न हो तब तक आयंबिल करने का अभिग्रह ! (8) संपूर्ण 45 आगमों के योग की आयंबिल पूर्वक साधना। (9) वीर्योल्लास बढते अल्प द्रव्य का अभिग्रह / आहार के द्रव्य भी सभी निश्चित करके इन्द्रियनिग्रह का कठोर अमलीकरण / महामंत्र की साधना / (1) करोड़ों की संख्या में श्री नवकार महामंत्र का जाप / (2) लाखों की संख्या में श्री वर्धमान विद्या का जाप तथा श्री सूरिमंत्र पंच प्रस्थान की आयंबिल पूर्वक 84 दिन की साधना के बाद लाखों की संख्या में सूरिमंत्र का जाप / (3) प्रतिदिन 5 -9 - 10 -12 लोगस्स का काउस्सग्ग / 100 लोगस्स का काउस्सग्ग भी अनुकूलता में करते थे। पावन तीर्थों की यात्रा (1) गृहस्थ जीवन में शिखरजी, जैसलमेर, कच्छ, भद्रेश्वर, मारवाड़, मेवाड़, सिद्धगिरि वगैरह की, प्राय: यथासंभव प्राचीन तीर्थों की यात्रा / उसी तरह छ'री' पालित संघों के साथ भी यात्राएँ की थीं /