________________ 436 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 आयंबिल सहित सिद्धगिरि की 99 यात्राएँ (2) एकाशन सहित 99 यात्राएँ (3) 3 - 4 बार गिरनार की 99 यात्राएँ (4) चौविहार छठ के साथ सिद्धगिरि की दो बार सात यात्राएँ वगैरह विशिष्ट आराधना की थी। उनके नाम का अर्थ "मनुष्यों में रत्न के समान" या 'उत्तम मनुष्य' सार्थक था / वे 2 वर्ष पूर्व ही स्वर्गस्थ हुए हैं / उपरोक्त तीनों आचार्य 'कर्म साहित्य निपुणमति', 'सच्चारित्र चुडामणि 'अजोड ब्रह्म मूर्ति' के रूप में सुप्रसिद्ध आचार्य भगवंत के समुदाय के हैं / ___ तब ही वास्तव में अनुमोदना होगी .. प्रिय वाचकों ! अपने जीवन में ऐसी घोर साधना करने की बात तो दूर रही, परन्तु विचार भी घबराहट पैदा कर देता है / तब ज्ञानी कहते हैं कि, “करण, करावण और अनुमोदन समान फल दिलाये / " दिल से अनुमोदना करके भी ऐसे तप का लाभ प्राप्त कर सकते हैं / किन्तु केवल ऐसी लूखी अनुमोदना करने से वास्तविक अनुमोदना नहीं गिनी जाती, परन्तु ऐसे तपस्वी सम्राट आचार्य भगवन्त की घोर तपश्या की सूचि पढकर अपने जीवन में एकाध भी छोटा व्रत, नियम, त्याग या तप का संकल्प करेंगे, व्यसनों का त्याग करेंगे तथा एक या तीन वर्ष में 108 आयंबिल करने का अभिग्रह लेंगे, और जहाँ तक ऐसे महापुरुष के प्रत्यक्ष दर्शनवंदन न हो सके वहाँ तक एकाध प्रिय वस्तु का त्याग करेंगे, तो ही पढी गयी तपश्चर्या की सूचि और की गई अनुमोदना सार्थक एवं सफल गिनी जाएगी / 186) महातपस्वीरल सूरीश्वरजी 43 वर्ष की उम्र में सजोड़े संयम अंगीकार कर 75 वर्ष की उम्र में सूरि पद पर विराजमान होकर 94 वर्ष की उम्र में (सं. 2048 महा सुदि 11) काल धर्म को प्राप्त हुए आचार्य भगवंत के द्वारा अपने जीवन में की गयी तप जप की साधना वास्तव में हमें आश्चर्यचकित करनेवाली है।