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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 435 2044 के अषाढ सुदि 6 से आयंबिल चालु किये उसे 11 वर्ष हो गये / आज दिन तक आयंबिल चालु ही हैं / पूज्यश्री 92 वर्ष की बुजुर्ग उम्र में भी जरा भी विचलित नहीं हुए हैं !!! पूज्यश्री ने 72 वर्ष की उम्र तक प्रति वर्ष दो बार नवपदजी की आयंबिल की ओली विधिपूर्वक आराधना से की / इस प्रकार पूज्यश्री ने अब तक 10 हजार से ज्यादा आयंबिल एवं तीन हजार से अधिक उपवास किये हैं / पूज्यश्री ने दीक्षा के बाद एकाशन से कम कभी पच्चक्खाण नहीं किया। पूज्यश्री ने 85 वर्ष की बड़ी उम्र में अखंड 1100 आयंबिल एवं सिद्धगिरि तथा गिरनार की यात्रा के बावजूद वैशाख माह की घोर गर्मी में राजकोट से अहमदाबाद तक 255 कि.मी. का विहार 12 दिन में किया। ऐसी उग्र घोर और भीष्म तपश्चर्या करने वाले पूज्यश्री के 3 अक्षर के नाम का अर्थ 'चन्द्र होता है / अपने लिए वज्र से भी कठोर और दूसरे जीवों के लिए फूल से भी कोमल एवं चन्द्र से भी शीतल सौम्य और वात्सल्य भरपूर स्वभाव के धनी पूज्यश्री को प्रतिदिन प्रात:कालमें उठते ही भाव से वंदन करने चाहिए / कितने ही श्रावक, पूज्यश्री अहमदाबाद में किसी भी स्थान पर विराजमान हों, उनके दर्शनवंदन के बिना मुँह में पानी भी नहीं डालते हैं। पूज्यश्री के ज्येष्ठ बंधुने उनसे पहले दीक्षा ली थी। वे भी आचार्य पद पर आरूढ हुए / पाँच अक्षरों के उनके नाम का अर्थ "चन्द्र को जीतने वाला" होना है / उनका जीवनबाग भी तप, त्याग, तितिक्षा गुरु समर्पण, वात्सल्य, गंभीरता, नि:स्पृहता, स्वाध्याय प्रेम, आश्रितों के संयम की देखभाल, क्रियारूचि, निरभिमानिता, समता, सौजन्य आदि अनेकानेक गुणों रूपी गुलाबों से महकता था / . तपस्वी सम्राट पूज्यश्री ने अपने सुपुत्र को केवल 7 वर्ष 5 माह और 18 दिन की वाल्यावस्था में संयम के पथ की ओर मोड़ा जो आगे जाकर आचार्य पदवी पर आरूढ हुए थे। उन्होंने भी (1) एक महिने में
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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