________________ 432 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 (बीच में 92 दिन एकाशन के अलावा) आयंबिल तप कर रहे हैं / उसमें भी प्रायः दिन में नहीं सोते हैं / पूरा दिन जाप एवं स्वाध्याय करते हैं। 20-22 कि.मी. के लम्बे विहारों में भी डोली (पालखी) का उपयोग नहीं करते हैं / __ आओ, हम ऐसे महान तपस्वी आचार्य भगवंत की तपश्चर्या की झलक पढकर पावन बनें / हम भी शुद्ध भाव से अनुमोदना एवं वंदना कर तपगुण को प्राप्त करें। जिन धर्म में तपस्या का बड़ा ऊँचा नाम है / (1) तीर्थंकर वर्धमान तप - बढते क्रम से 1 उपवास से 24 उपवास तक वैसे ही उतरते क्रम से 1 उपवास से 24 उपवास तक / कुल 600 उपवास / विशेषता : (A) 22 वें श्री नेमीनाथ भगवान के लगातार 22 उपवास कर 23 वें दिन श्री सिद्धगिरि की यात्रा कर आयंबिल से पारणा से गिरनार तलहटी की यात्रा कर आयंबिल से पारणा किया (C) उतरते 31 वे दिन श्री सिद्धगिरि की यात्रा कर आयंबिल से पारणा किया / (D) सं. 1995 में अषाढ वदि 14 (मारवाड़ी) को सुरत चातुर्मास प्रवेश के दिन से फाल्गुन वदि 6 के विहार तक 260 दिन की स्थिरता के दौरान चालु वर्षीतप में १६वें भगवान से 23 वें भगवान तक के 16 + 17 + 18 + 19 + 20 + 21 + 22 + 23 = 156 उपवास, शेष 104 दिन में वर्षीतप के 52 उपवास अर्थात 260 दिन में कुल 208 उपवास और 52 पारणे किये ... (2) बीस स्थानक पद की आराधना : (A) प्रथम अरिहंत पद की आराधना में लगातार 20 उपवास 20 बार कर अन्तिम 20 उपवास के समय श्री सिद्धगिरि की पैदल यात्रा कर 21 वे दिन आयंबिल से पारणा किया /