________________ 430 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 सं. 2034 चैत्र वदि 10 के दिन दूसरी बार १००वी ओली का आपका पारणा अहमदाबाद में हुआ / मोह के सैन्य का विध्वंस करने हेतु रणसंग्राम में लड़ते आचार्य श्रीने तीसरी बार नींव डाली और अन्त समय तक वे 89 वी ओली पूर्ण कर चुके थे / उन्होंने विश्व रिकार्ड समान करीब 14 हजार आयंबिल किये थे। इतनी तपश्चर्या के बावजूद भी प्रसिद्धि एवं आडम्बर से दूर रहते ऐसे सौम्य स्वभावी आचार्य भगवंत का नाम अन्त समय तक कई लोग नहीं जानते थे यह कितने आश्चर्य की बात है ! किसी भी राजा के राज्याभिषेक के समय की जाने वाली विधि उनके नाम का सूचन करती है / उनके नाम का उत्तरार्ध जिन शासन के एक ऐसे विशिष्ट प्रतीक का सूचन करता है, जिसकी रक्षा हेतु कुमारपाल महाराजा के बाद राजगद्दी पर आये अत्याचारी राजा अजयपाल के समयमें 21 नवपरिणित युगलोंने धगधगते तेल की कढाई में स्वयं को होम कर की थी। 'तपस्वी सम्राट' आचार्य भगवंत के गुरुदेव श्री थे, कर्म साहित्य निष्णात, सुविशुद्ध सच्चारित्र चूडामणि, अखंड ब्रह्मतेजोमूर्ति के रूप में जिन शासन में सुप्रसिद्ध हो गये सुविशालमुनिगण के नेता आचार्य भगवंत श्री। अब तो पहचान गये न इस गुरु-शिष्य की बेजोड़ जोडी को ? ! गत चातुर्मास में 2055 में पूज्यश्री ने अहमदाबाद (शाहीबाग) में समाधिपूर्वक देह त्याग किया / तपस्वी सम्राट् सूरीश्वर के चरणों में अनंतशः वंदना /