________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 184 100 : 100 . 89 ओली के आराधक तपस्वी सम्राट' सरिराज समस्त विश्व में हजारों साल के इतिहासमें विक्रमजन्य कह सकें ऐसी उत्कृष्ट तपश्चर्या वर्धमान आयंबिल तपकी 100 + 100 + 89 ओली के आराधक परम तपस्वी आचार्य भगवंत श्री सं. 1990 में 19 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने के बाद, बड़ी दीक्षा के 1 महिने के योग भी बड़ी मुश्किल से कर सके थे ! ... उन्हें आयंबिल का लूखा आहार देखते ही उल्टियाँ होने लगतीं थीं / परन्तु उन्होंने गुरु समर्पणभाव के प्रभाव से प्राप्त हुई अमोघ गुरुकृपा के अचिन्त्य प्रभाव से अकल्पनीय अजोड़ तपसिद्धि प्राप्त की / 21 वर्ष की उम्र में उनके दाँतों में तीव्र वेदना उत्पन्न हुई / आयुष्य की प्रबलता के प्रभाव से नवजीवन प्राप्त किये हुए मुनि श्री ने जीवन की क्षण भंगुरता का दिव्य ज्ञान प्राप्त कर तप की भावना जाग्रत की / उन्होंने खून के बुंद बुंद में तपकी उग्र साधना का संकल्प कर वर्धमान तप प्रारम्भ किया / इसमें भी 40 से १००वी ओली तक ठाम चौविहार आयंबिल किये / भयंकर गर्मी के विहारों में भी पूज्यश्री ठाम चौविहार करते थे। उन्होंने प्रथमबार १००वीं ओली का पारणा सं. 2013 में करने के बाद कुछ ही समयमें पुनः नींव डालकर अविरत तप यात्रा चालु रखी / उम्र से वृद्ध होने के बावजूद संकल्प में सदा तरुण रहने वाले मुनिश्री के हृदयमें आनंद आनंद था, फलतः 1 से 72 ओलियाँ ठाम चौविहार पूर्ण की। इस महापुरुषने शरीर की अनेक प्रतिकूलताओं के बावजूद देवगुरु की कृपा के बल से कई विघ्नों के बादलों को दूर कर तप यात्रा चालु रखी / आप सं 2022 में पंन्यास पद पर एवं सं. 2029 में आचार्य पद पर आरूढ किये गये /