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________________ 428 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 गाय और चचेरे भाई के निमित्त से भाई विशाखानंदी को मार डालने का निदान कर दिया, फलस्वरूप अठारहवें भव में विशाखानंदीके जीव शेर को खत्म किया और क्रोधांध जीवन व्यतीत कर सातवीं नर्क में प्रभु वीर का जीव चला गया / संयम की प्रतिज्ञा के भंग से विध-विध भवों के कर्मों की कठोरता को चरमभव में अति उग्र तप युक्त संयम से 12 // साल तक सहन करना पड़ा / सार यही है कि संयम की आराधना परम सुख और आशातना चरम दुःख का कारण बन सकती है / उसी प्रकार संयमी के आदर से लखलूट निर्जरा है और अनादर जन्म-जरा के चक्कर में गिर जाना है / न्याय की भाषा में संयम की ली हुई प्रतिज्ञा का भंग स्वयं के निग्रह (पराजय) का कारण है / धन्य है इन संयमी आत्माओं को, जो अनुकूलता प्रतिकूलता में समभावी हैं / आपत्ति को ही साधना की संपत्ति मानते हैं / तन शायद तनावपूर्ण है, फिर भी मन से जो हारे नहीं / ऐसे संयमी महात्माओं को करोड़ों वंदन, अभिनंदन और हार्दिक अनुमोदना उनकी आराधना की / गुणानुरागी पू. गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा. ने इस हिन्दी प्रकाशन में करीब 20 नये दृष्टांतों का उल्लेख किया है, और इस प्रकार का प्रकाशन एक नया ही मोड़ है / अपूर्व सर्जन है, प्रेरणाप्रद है / आशा रखते हैं कि ऐसे सर्जन का उद्देश्य सफलता को प्राप्त करें। अन्य आनुभविक उल्लेख स्वयं गणि म. साहेब द्वारा लिखित प्रस्तावना से प्राप्त करना उचित है / "इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, तथापि सदि समयोग, सफल वही संयमयोग"। "मोदन गुणी प्रति, मोदना और गुणप्रीति, जिनाज्ञाप्रेमी की प्रशस्ति, अनुमोदना की सच्ची रीति " /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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