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________________ 426 - बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 न कुछ संस्कारों का सर्जन किया होता है, जिसके कारण अंतिम भव में क्षपकश्रेणि, कैवल्य ज्ञान और अंतमें निर्वाणादि से मोक्ष भी उस संयम साधना का ही परिणाम होता है / बाहुबलीजी का एक वर्षीय वार्षिक तप और निर्जल उपवास, सुंदरी का 60,000 वर्ष तक आयंबिल का तप, पूर्व भव के संयम संस्कार से ही तो संपन्न हुआ है न ? वैसे ही जंबूस्वामी के जीवका पूर्व भव का बारह साल तक का छठ्ठ-आयंबिल का तप, प्रभु शांतिनाथ द्वारा वज्रायुध चक्री के भव का बारह मासी चौविहार उपवास का तपादि अंतिम भव में कैवल्य के प्रकटीकरण में बहुत ही उपयोगी बने हैं। मन - वचन और काययोग का संयम बहुत बड़ी ताकत रखता है / इसीलिये तो संयमी का मौन ही भाषा बन जाता है, जीवन ही उदाहरण बन जाता है / साधना ही अन्य की आराधना का मार्ग बन जाता है। पूर्व भवों की सुंदर संयम साधना से निष्पन्न प्रभु वीरका साधना काल कितना कठोर-सा था किन्तु इसीलिये तो आज भी परमात्मा के शासन के साधु साध्वी म.सा. को देखते ही लोग नत-मस्तक हो जाते हैं, जिसमें प्रभाव-प्रताप तो परमात्मा की साधना का ही है / राजा दशरथ द्वारा कंचुकी की वृद्धावस्था देखकर वैराग्य, हनुमान का संध्या के बादल देखकर, करकंडु मुनि का वृद्ध वृषभ को देखकर, दुर्मुखराजा का इन्द्र स्तंभ दर्शन से, नग्गति का पत्र-पुष्प. रहित वृक्ष को देखकर विरागी बन जाना अगले भवों की संयम साधना का ही प्रभाव था / संयम की साधना जितनी शुद्ध, गहरी, निर्वेद-संवेग युक्त होगी, उतनी ही स्व-परहित का कारण बनती है। संयमी को तो देवता भी नमस्कार करते हैं।' कौन जानता है कि, कौन साधक कितना आराधक है ? कभी कभी तो ऐसा भी बन जाता है कि, दूर के संयमी के समाचार से ही हम रोमांचित हो जायें किन्तु निकट के आत्मलक्षी साधु को पहचानने में धोखा खा जायें / सांसारिक परिचित साधु-साध्वी या अपने गाँव, शहर, राज्य के महाराज ज्यादा उपकारी लगें वह तो द्रष्टिराग हुआ, हकीकत में तो स्वार्थ के संसार से निष्क्रमित साधु-साध्वी समुदाय को नि:स्वार्थ दृष्टि से ही देखनेवाला गृहस्थ संयम प्राप्ति हेतु योग्य रह
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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