________________ 421 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 का स्वीकार कर लिया !... अपना जीवन रत्नत्रयी की आराधनामें जोड़ दिया। प्रतिदिन एकाशन और आयंबिल की ओलियाँ आदि तपश्चर्या का प्रारंभ कर दिया ! बीचमें चतारि-अठ्ठ-दश-दोय तप भी कर लिया !.. वैशाखी के सहारे वे एकाशन करने के लिए अपने घर जातीं और बाकी का सारा समय उपाश्रय में ही व्यतीत करती थीं / दीक्षा लेने की तीव्र उत्कंठा होते हुए भी केवल तीन फीट का शरीर और हाथ-पैर छोटे इत्यादि विकलांगता के कारण दीक्षा लेना संभव ही नहीं था / अब क्या किया जाय / समय कैसे बीताना ! आजकल कई लोग टी.वी. देखने में, तास और जुआ खेलने में अपना अमूल्य समय गवाँ देते हैं, मगर सत्संग के प्रभाव से अनिलाबहन ने ऐसा कोई गलत रास्ता नहीं लिया / समय का सदुपयोग करने के लिए उन्होंने परमात्मा ने बताये हए सामायिक और स्वाध्याय का उत्तम आलंबन लिया / . उभयकाल प्रतिक्रमण के अलावा प्रतिदिन 8 सामायिक लेकर स्वाध्यायमग्न अनिलाबहन ने पिछले 36 सालमें 72 पक्ष = कुल 1080 सामायिक (एक पक्ष = 15 सामायिक) 229 बेला... 349 तेला... वर्धमान तप की 100 ओली की तरह 5150 सामायिक ... 24 तीर्थंकरों के चढते-उतरते क्रमसे सामायिक और 7 नरक निवारण सामायिक - कुल 2800 सामायिक इत्यादि रूपमें सामायिक की साधना की है। पंच प्रतिक्रमण, चार प्रकरण, छह कर्मग्रंथ, तत्वार्थ सूत्र, तीन शतक, वीतराग स्तोत्र और प्रत्येक पर्व-तिथि आदि के चैत्यवंदन -स्तवन -थोय- सज्झाय- ढाळ आदि कंठस्थ हैं / निरंतर अप्रमत स्वाध्यायमय जीवन हैं / अध्ययन के साथ साथ नि:स्वार्थ भाव से छोटे-बड़े सभी को अध्ययन भी कराती हैं / छोटे बच्चे जब से कुछ बोलना सीखते हैं तभी से उनको धार्मिक सूत्र आदि सीखाती रहती हैं / बीरवा नामकी 7 साल की बच्ची को उन्होंने पंचप्रतिक्रमण, नवस्मरण, चार प्रकरण तीन भाष्य, इत्यादि का अध्ययन कराया है / बीरवा ये सभी सूत्र टेप रेकर्ड