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________________ 420 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 विकलांगता के कारण दीक्षा का असंभव होने पर 182 प्रतिदिन 8 सामायिक + 2 प्रतिक्रमण करती हुई - कु. अनिलाबहन अरविंदभाई शाह मनुष्य मनोरथ तो करता है कई प्रकार के, मगर आखिर वही होता है जो प्रकृति को मंजूर होता है ! प्रत्येक मनुष्य में यदि समानता होती तो कर्मसत्ता को कौन भला स्वीकारते ? अहमदाबाद में कुछ ऐसा ही हुआ / पिता अरविंदभाई के घरमें और माता शारदाबहन की कुक्षि से उत्पन्न अनिलाबहन को कर्मसत्ता ने जन्म के साथ ही विकलांगता प्रदान कर दी / उनके पैर मस्तक से जुड़े हुए थे / 5 बार शस्त्रक्रिया हुई तब पैर सीधे हुए / अब वह चल सकती थी / कर्मक्षय के लिए छोटी उम्र में पालिताना-खंभात और शाहपुर में क्रमशः तीन उपधान की आराधना कर ली / पांचवी कक्षा तक व्यावहारिक अध्ययन करने के बाद अचानक शरीर में ऐसा परिवर्तन हो गया कि चलना असंभव हो गया ! अब क्या होगा ? भविष्य की चिन्ता सताने लगी ! मगर उसी समय किसी जन्म में किया हुआ पुण्य भी साथमें उदय में आया और शासन सम्राट प.पू.आ.भ. श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय के पू. सा. श्री हीराश्रीजी म. की शिष्या पू. सा. श्री मंगलप्रभाश्रीजी म. अनिलाबहन के घर गौचरी बहोरने के निमित्त से पधारे। उन्होंने अनिलाबहन की करुणाजनक परिस्थिति देखी और वात्सल्यभाव से कहा 'अपनी पोल के उपाश्रय में नीचे रहने की व्यवस्था है, चलो उपाश्रयमें, तुझे वहाँ आनंद आयेगा / ...' अनिलाबहन ने हिंमत की / उपाश्रय में गयी, वहाँ अच्छा लगा। सारा दिन एक ही स्थान में लेटकर या बैठकर रहना था, फिर भी कर्मसत्ता ने जो भी दिया उसे प्रसाद के रूपमें प्रेमसे स्वीकार लिया !!! उस वक्त उनकी उम्र केवल 19 साल की थी, फिर भी चतुर्विध श्री संघ की साक्षी में परमात्मा के समक्ष विधिपूर्वक आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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