________________ 417 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 अलंकार माँगे भी नहीं। उपरोक्त घटना को कुछ साल बीत गये / नौकरी करनेवाले परिवारने नौकरी छोड़ दी / धीरे धीरे अपना व्यवसाय शुरू किया और पुण्ययोग से बहुत धन कमाकर श्रीमंत बन गया / अब इस परिवार की मुख्य श्राविका को वर्षों पहले की भूल का बहुत पश्चात्ताप होने लगा / फलतः वह श्रेष्ठी परिवार के पास गयी और पूर्व की घटना याद दिलाकर अलंकारों की जो भी किंमत हो वह वापस लेने की विज्ञप्ति करने लगी ! लेकिन सेठानी कहती हैं, "मुझे इस बात की कोई स्मृति नहीं है इसलिए मैं कुछ भी नहीं ले सकती !' वह श्राविका पश्चात्ताप से रोती हुई बारबार विज्ञप्ति करने लगी, मगर श्रेष्ठी परिवार कुछ भी स्वीकार ने के लिए तैयार नहीं हुआ। दो साल पहले शासन प्रभावक प.पू.आ.भ. श्री विजयहेमप्रभसूरीश्वरजी म.सा. आदि 10 का चातुर्मास कलकत्ता में हुआ था, तब वह श्राविका आचार्य भगवंत के पास गयी और विज्ञप्ति की, 'कृपा करके आप श्रेष्ठी परिवार को मनायें' प्रेरणा करें कि वे अलंकारों की कीमत का स्वीकार करके मुझे ऋणमुक्त बनायें / इतना कहकर वे जोर से रोने लगी ! आचार्य भगवंत ने उसे आश्वासन दिया / बादमें भाद्रपद वदि 12 के दिन भव्य चैत्य परिपाटी का आयोजन हुआ था / उस श्रेष्ठी परिवार के घरमें गृहचैत्य होने से आचार्य भगवंत भी सपरिवार प्रभुदर्शन के लिए वहाँ पधारे थे ओर 4 घंटों तक रूके थे, तब वह श्राविका भी दर्शन करने के लिए वहाँ आयी थी और फिर से अपने को ऋणमुक्त बनवाने के लिए विज्ञप्ति की। आचार्य भगवंत ने उस श्रेष्ठी परिवार को समझाने का प्रयत्न किया। प्रारंभ में तो वह परिवार कुछ भी स्वीकारने के लिए तैयार नहीं था, मगर अंतमें आचार्य भगवंत की आज्ञा को शिरोमान्य किया तब उस श्राविका की आँखोंमें से ऋणमुक्त होने से हर्ष के आँसु बहने लगे / उस श्राविका की पुत्रवधूओंने भी आचार्य भगवंत को बताया कि पूज्यश्री ! हमारी सास हररोज उस बात को याद करती हुई रोती थी मगर आज उनको शांति हुई। ऋणमुक्त बननेवाली श्राविका को तब ठाम चौविहार २९वाँ वर्षीतप चालु था !!! उनकी भावना एक मौन वर्षीतप और एक छठ्ठ से वर्षीतप करने की है। उनकी उम्र करीब 70 साल की है। वर्तमान कालमें भी साधर्मिक भक्ति के और ऋणमुक्ति के ऐसे उत्तम दृष्टांत सुनने के लिए हमें मिलते हैं यह हमारा सौभाग्य बहरत्ना वसुंधरा - 2-27