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________________ 416 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 तपश्चर्या के साथ साथ सम्यक् ज्ञान की अभिरुचि भी अनुमोदनीय है / अपने परम उपकारी गुरुदेव पू. मुनिराज श्री युगभूषणविजयजी म.सा. एवं उनके ज्येष्ठ बंधु पू. मुनिराज श्री मोहजितविजयजी म.सा. के तात्त्विक प्रवचनों की हस्तलिखित नोट भी दर्शनाबहन ने तैयार की है, जिनकी झेरोक्ष कोपियाँ कई तत्त्वजिज्ञासु बड़े भाव से पढते हैं / दर्शनाबहन की आराधना की भूरिश: हार्दिक अनुमोदना / उनकी 1008 अठ्ठम करने की भावना शासनदेव की कृपा से परिपूर्ण हो यही मंगल भावना / पता : दर्शनाबहन नयनभाई नरोत्तमदास शाह 7/8 राजरत्न एपार्टमेन्ट, माणेकबाग देरासर के सामने, आंबावाडी, अहमदाबाद (गुजरात). 380015. फोन : 404550 निवास सार्मिक भक्ति का उत्तम उदाहरण एवं ऋणमुक्ति की अनुमोदनीय भावना ___ शास्त्रों में साधर्मिक भक्ति के विषय में ज़िनदास श्रेष्ठी आदि के उदाहरण प्रसिद्ध हैं / कुछ वैसी ही घटना कुछ समय पहले कलकत्ता में घटी थी। एक अत्यंत धनाढ्य जैन श्रेष्ठी के वहाँ आज से करीब 35-40 साल पहले कोई जैन परिवार नौकरी करता था / उनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर थी। एक बार नौकरी करनेवाली श्राविका ने किसी प्रसंग में पहनने के लिए अपनी सेठानी के पाससे सुवर्ण के अलंकार माँगकर लिये और हर्षोल्लास के साथ प्रसंग मनाया / मगर बादमें भावों में परिवर्तन हो जाने से अलंकार वापस लौटाये नहीं / उदारदिल साधर्मिकभक्त सेठानी ने
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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