________________ 414 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 लगातार 1008 अतुम तप की भावना से 180 450 से अधिक अठ्ठम तप की आराधिका महातपस्विनी दर्शनाबहन नयनभाई शाह अहमदाबाद निवासी महातपस्विनी सुश्राविका श्री दर्शनाबहन शाह (उ.व.५१) को तप की विरासत उनके पिताजी एवं ससुरजी से संप्राप्त हुई है। दर्शनाबहन के पिताजी भोगीलालभाई बादरमल शाह ने 32 साल की युवावस्था में ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लिया था / आज से 22 साल पहले जब हृदय के दौरे के कारण उनका स्वर्गवास हुआ था उस दिन उनका लगातार 356 वाँ आयंबिल था / कुल 1008 संलग्न आयंबिल करने का उनका अभिग्रह था / इस से पूर्व में 13 बार हृदय का दौरा (हार्ट एटेक) हो गया था फिर भी वे संयम और तप के प्रभाव से जीवित रहे थे और मृत्यु से डरे बिना तपश्चर्या चालु रखी थी / ऐसे महातपस्वी, व्रतधारी पिताकी सुपुत्री दर्शनाबहन आज 1008 अठ्ठम करने की भावना से 450 से अधिक अठ्ठम कर चुकी हों तो इस में असंभव की बात नहीं हो सकती है। दर्शनाबहन के ससुर सुश्रावक श्री नरोत्तमदासभाई गोदड़जी शाह भी महातपस्वी थे / 'तपावलि' पुस्तक में वर्णित प्रायः सभी प्रकार की तपश्चर्या उन्होंने अपने जीवन में कर ली थी !!! उन्होंने 49 चौविहार अठ्ठाईयाँ की थीं ! 60 वे साल की उम्र में मासक्षमण तप किया था और 61 वे साल की उम्र में नवकार महामंत्र के 68 अक्षरों की आराधना 76 दिनों मे पूर्ण की थी, जिसमें 68 उपवास के बीचमें केवल 8 ही बियासन किये थे !!! पिछले कई वर्षों से वे चातुर्मास के प्रारंभ से लेकर पर्युषण तक लगातार छठ्ठ तप करते थे / पर्युषण में चौविहार अठ्ठाई तप और बाद में कार्तिक पूर्णिमा तक एकांतर उपवास करते थे ! करीब 3 // साल पूर्व में उनका स्वर्गवास हुआ है। ऐसे महातपस्वी सुश्रावक श्री नरोत्तमभाई शाह की पुत्रवधू श्रीमती