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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 413 पक्की नवकारवाली का जप करने द्वारा 1 लाख नवकार का जप विधिवत् पूर्ण किया / ... (3) नवपदजी की 75 से अधिक औलियाँ पूर्ण की हैं जिनमें से 10 ओलियाँ एक धान्य की और अलूणी (बिना नमक की) की हैं। (4) 27 साल से कम से कम बिआसन का पच्चक्खाण करते हैं / (5) 20 साल से हररोज प्रात:काल में प्रतिक्रमण के बाद सामायिक लेकर अरिहंत पद की 20 माला का जप करके प्रभुपूजा करने के बाद ही बिआसन करती हैं ! अरिहंत पद का 2 करोड़ जप किया है / . (6) 37 साल से श्रावक के 12 व्रतों का पालन करती हैं / (7) 3 उपधान एवं वर्षीतप किया है / प्रत्येक तप का उद्यापन किया है / (8) 27 साल से पालिताना में चातुर्मासिक आराधनाएँ करती हैं। (9) प्रभुभक्ति उनका प्राण है / आज तक संगेमरमर और धातु के कुल 15 जिनबिम्ब विविध स्थलों पर पधराये हैं / शंखेश्वर तीर्थ में 108 पार्श्वनाथ जिनालय में श्री नवखंडा पार्श्वनाथ भगवंत की देहरी का लाभ भी उन्होंने लिया हैं !... (10) गुरुभक्ति भी अत्यंत अनुमोदनीय है। 108 रजोहरण बन सकें ऐसे 108 उन के पेकेट साधु-साध्वीजी भगवंतों को बहोराये हैं / (11) आगम ग्रंथों को छपवाने के लिए भी द्रव्य का सद्व्यय करके श्रुतभक्ति करती हैं / (12) किसी भी संयोगों में प्रतिदिन उभय काल प्रतिक्रमण और 5-6 समायिक अवश्य करती हैं / ____धीरजबहन के जीवनमें से प्रेरणा लेकर सभी तत्त्वत्रयी के उपासक और रत्नत्रयी के आराधक बनें यही शुभाभिलाषा / पत्ता : धीरजबहन रतिलालभाई सलोत 69 मोदी वीला, दूसरी मंजिल, साउथ वेस्ट रोड़ नं. 4, जुहु स्कीम, मुंबई- 400056. फोन : 6208106 / 6204234
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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