________________ 412 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 "तो माँ ! सुन लो, मैं अभी ही टी.वी. को घर से बाहर निकालता हूँ ! इस घर में अब आपकी उपस्थिति में कभी भी टी.वी. नही आयेगा / हमारी आत्मा की इतनी हितचिन्बा करनेवाली आपके जैसी "कल्याणमित्र" माँ को पाकर हम धन्य हो गये हैं" कहता हुआ सुपुत्र अपनी माँ को सन्मानपूर्वक घर में वापस ले आया / टी.वी. को हमेशा के लिए बिदाई मिल गयी ! सौराष्ट्र में हालार प्रदेशोत्पन्न दो मुनिरत्नों की जन्मदात्री उपर्युक्त श्राविकारत्न की कल्याणमित्रता और संस्कृति प्रेम की हार्दिक अनुमोदना / उनके दोनों सुपुत्र वर्धमानतपोनिधि प.पू.आ.भ.श्री विजयभूवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय में प्रखर प्रवचनकार के रूपमें अद्भुत शासन प्रभावना कर रहे हैं / अन्य माताएँ भी इस दृष्टांतमें से प्रेरणा ग्रहण करें यही शुभेच्छा / 179 सिद्धाचलजी महातीर्थ में भवपूजा करनेवाली उत्तम आराधक सुश्राविका प्री धीरजबहन सलीत सौराष्ट्र में महुवा की पावन घरती में वि.सं. 1978 में जन्मी हुई और दाठा निवासी रतिलालभाई सलोत के साथ विवाहित सुश्राविका श्री धीरजबहन (उ.व. 75) की ज्येष्ठ सुपुत्री रमा (हाल सा. श्री रयणयशाश्रीजी) ने वि.सं. 2016 में दीक्षा ली तब से धीरजबहन का जीवन विशेष रूपसे धर्ममय होने लगा / उन्होंने आज तक निम्नोक्त प्रकार से अनुमोदनीय आराधनाएँ की हैं। __(1) नित्यभक्तामरस्तोत्रपाठी प.पू.आ.भ. श्री विजयविक्रमसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें श्री सिद्धाचलजी महातीर्थ की 99 यात्राएँ विधिपूर्वक की तब गिरिराज के उपर बिराजमान नव टोंक में रहे हुए सभी जिनबिम्बों की नवांगी पूजा की थी / हररोज करीब 100 जिनबिम्बों की पूजा करके शाम को 4 बजे नीचे आकर एकाशन करती थीं / (2) 20 दिन तक केवल खीरसे एकाशन करके, हररोज 50