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________________ 411 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 विभक्त कुटुम्ब में रहती हुई देवरानी-जेठानी ने सास-ससुर की सेवा करने का निर्णय कर लिया / कार्तिक से चैत्र तक जेठानी गाँव में रहकर सास-ससुर की सेवा करती हैं और देवरानी मुंबई में रहकर दोनों कुटुम्बों की देखभाल करती हैं / बादमें वैशाख से आसोज तक देवरानी गाँव में रहकर सास-ससुर की सेवा करती है और जेठानी मुंबई में रहकर दोनों कुटुम्बों की देखभाल करती हैं / "दुष्प्रतीकारौ मातापितरौ" - 'माँबाप के उपकारों का ऋण चुकाना मुश्किल है', इस शास्त्रीय विधान को समझनेवाली पुण्यात्माएँ माँ-बाप की तीर्थ की तरह सेवा करते हैं, इसका दृष्टांत वर्तमानकाल में भी हमें देखने को मिलता है यह हमारा पुण्योदय है। __ प्रत्यक्ष उपकारी माँ-बाप की सेवा-विनय द्वारा सुपात्र बने हुए मनुष्यों में ही पारलौकिक उपकारी गुरु और परमगुरु की सेवा करने की पात्रता प्रकट हो सकती है। प्रत्यक्ष उपकारी माँ-बाप की सेवा भक्ति की उपेक्षा करनेवाले, परलोक एवं परमलोक के उपकारी देव-गुरु की सेवा-भक्ति के लिए कैसे पात्र बन सकते हैं ??? 178 'माता हो तो ऐसी हो "माँ तुम घर वापस लौट आओ / आप घर छोड़कर क्यों चली गयीं ! आप इस तरह घर छोड़कर चली जायेंगी तो हम कितनी मुसीबतों में फँस जायंगे, इसकी भी आपको चिन्ता नहीं है ?" . "बेटे ! तेरे प्रति हितचिन्ता के कारण ही मैंने इस घर का त्याग किया है। मैंने तुझे पहले से ही कहा था कि यदि इस घरमें तू टी.वी. का पाप लायेगा तो मैं इस घर में नहीं रहुँगी / मैं तेरी माँ हूँ। टी. वी. को घर में लाकर तू तेरी आत्मा का भी विचार नहीं करे और घर के सभी सदस्यों को भी पाप में डाले यह मुझसे कैसे बरदास्त हो सकता है ?"
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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