________________ 410 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 यात्रा (10) सुथरी तीर्थ के 4 छ'री' पालक संघो में यात्रा .... इत्यादि / __नवकार महामंत्र का 5 बार 9 लाख संख्यामें जप किया ! दैनिक जीवनमें भी सामायिक-प्रतिक्रमण-जिनपूजा आदि आराधनाओं के साथ साथ स्वभाव में सरलता, नम्रता, समता, वात्सल्य आदि सद्गुणों के कारण वे आबालवृद्ध सभी के हृदय में बस गये हैं / वि.सं. 2035 एवं सं 2045 में भचीमा ने हमारी निश्रामें चतुर्विध श्री संघ के साथ अत्यंत भावोल्लासपूर्वक शत्रुजय महातीर्थ 99 यात्राएँ की थीं / पता : भचीबाई भवानजी चना मु.पो. गोधरा-कच्छ ता. मांडवी-कच्छ पिन : 370450. सास-ससुर की सेवा के लिए 6-6- महिनों तक १७७/पति और संतानों का वियोग स्वीकारती हुई देवरानी-जेठानी "अब हम क्या करेंगे ? हम यहाँ माँ-बाप की सेवा तो अच्छी तरह से करते हैं, मगर उनको मुंबई का शहरी जीवन एवं यहाँ का दूषित पर्यावरण अनुकूल नहीं होने से वे दोनों हमेशा के लिए गाँव में रहने का निर्णय करके गाँव में चले गये हैं / हम दोनों भाई 20-25 साल से यहाँ मुंबई में विभक्त परिवार में रहते हैं / दोनों की संतानें यहीं पढती हैं / व्यवसाय भी यहीं है, इसलिए हम तो मुंबई को छोड़ नहीं सकते, और दूसरी और इस उम्र में सेवा के योग्य उम्रवाले माँ-बाप की, सेवा से वंचित रहना भी उचित नहीं लगता है"- मुंबई में रहते हुए सौराष्ट्र के दशा श्रीमाली ज्ञातीय जैन भाई अपने दिल का दर्द अपनी धर्मपत्नी के सामने प्रस्तुत कर रहे थे / "आप चिन्ता नहीं करे / मैं भाभी (अपनी जेठानी) से मिलुंगी और हम दोनों मिलकर कुछ भी रास्ता निकालेंगे" धर्मपत्नीने प्रत्युत्तर दिया।