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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ से प्रतिवर्ष ६ अठ्ठाईओं में ८ या ९ उपवास (६) चत्तारि-अठ्ठ-दश-दोय तप (७) १३ कठियारा निवारण तप-संलग्न १३ अठ्ठम (८) संलग्न ५०० आयंबिल - केवल दो ही द्रव्य से आयंबिल (९) समवसरण तप (कुल ६४ उपवास) (१०) सिंहासन तप (११) पंचकल्याणक तप अतीतअनागत-वर्तमान चोवीसी-२० विहरमान-४ शाश्वत जिन, कुल ९६ तीर्थंकरों के ५-५ कल्याणक निमित्त से कुल ४८० उपवास ! प्रत्येक उपवास के पारणे में साधु साध्वीजी भगवंतों को उल्लसित भाव से सुपात्रदान देकर, ४-५ साधर्मिकों की भक्ति करने के बाद ही पारणा करते थे ! (१२) महाभद् तप : इस तप में प्रथम श्रेणी में १-२-३-४-५-६-७ उपवास अर्थात् कुल २८ उपवास होते हैं । पारणे में भी एकाशन ही करते थे । इस तरह कुल ७ श्रेणी के १९६ उपवास एवं ४९ पारणे मिलाकर २४५ दिनों में यह तप पूर्ण होता है । (१३) भद्रोत्तर तप : इस तप में कुल ५ श्रेणियाँ होती हैं । प्रत्येक श्रेणि में ५-६-७-८-९ उपवास एक एक पारणे के बाद करने के होते हैं । कुल १७५ उपवास एवं २५ पारणा मिलाकर २०० दिन में यह तप पूर्ण होता है । (१४) भद्रतप : इस तपमें ५ श्रेणियाँ होती हैं । प्रत्येक श्रेणि में १-२-३-४-५ उपवास एक एक पारणे के बाद करने के होते हैं । कुल ७५ उपवास और २५ पारणे मिलाकर १०० दिनों में यह तप होता हैं।
__ प्रत्येक तप के पारणे में झमकुबहन ने बिआसन के बदले में दो दव्य से एकाशन ही किये हैं !!!
(१५) धर्मचक्र तप : प्रारंभ और पूर्णाहुति में १-१ अठ्ठम और मध्यमें ३७ उपवास एकांतरित इस तरह कुल ८२ दिनों में यह तप पूर्ण होता है।
(१६) दो साल तक प्रतिमाह चौविहार अठ्ठम तप करते थे । पार्श्वनाथ भगवंत के भव्य तीर्थों में जाकर ३ दिन चौविहार अठ्ठम के साथ जप और प्रभुभक्ति करते थे । पारणा अन्य तीर्थ में जाकर प्रभुभक्ति आदि करने के बाद करते थे ! (१७) शत्रुजय तप : पालिताना में दो चातुर्मास किये । दोनों बार छठ्ठ एवं दो अठ्ठम किये ।