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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
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अप्रमत्त तपस्विनीरत - झमकुवहन लालजी खोना
पूर्व के महा मुनिवर मासक्षमण के पारणे मासक्षमण जैसी उग्र तपश्चर्याएँ अप्रमत्तत्ता से करते थे । इस विधान में आधुनिक जमाने में यदि किसीको अतिशयोक्ति लगती हो तो उनको महातपस्विनी सुश्राविका श्री झमकुबहन (उ.व. ६२ प्रायः) के दर्शन करने योग्य हैं ।
मूलत: कच्छ-नलिया गाँवके निवासी एवं वर्तमान में मुंबई-मुलुन्ड में रहती हुई सुश्राविका श्री झमकुबहन ने अप्रमत्ततापूर्वक की हुई तपश्चर्या का वर्णन पढ़कर किसी नास्तिक का भी हृदय अहोभाव से झुके बिना नहीं रह सकता ।
अढ़ाई के पारणे अढ़ाई जैसी उग्र तपश्चर्या में आठवें उपवास के दिन भी वे खड़े पाँव सभी की सेवा करती रहती हैं । अपरिचित व्यक्तिको कल्पना भी नहीं आ सकती कि आज इस श्राविका का ८वाँ उपवास होगा। ऐसी प्रसन्नता सदैव इनकी मुखमुद्रा पर छायी रहती है । यदि छेवा संघयणवाले कमजोर दिखते हुए शरीर से भी ऐसी महान तपश्चर्या हो सकती है तो वज्रऋषभनाराच आदि सुदृढ संघयणवाले पूर्वकालीन महापुरुष मासक्षमण के पारणे मासक्षमण जैसी तपश्चर्या करते हों तो उसमें अतिशयोक्ति या असंभवोक्ति मानने का कोई कारण नहीं है । झमकुबहन की महान तपश्चर्या का विवरण निम्नोक्त प्रकार से है ।
(१) अठ्ठाई के पारणे अठ्ठाई-३१, अट्ठाई के पारणे में भी केवल २ द्रव्योंसे एकाशन ! (२) भगवान श्री महावीर स्वामी ने १२॥ वर्ष के छद्मस्थकाल में की हुई तपश्चर्या के मुताबिक १२ अठ्ठम, २२९ छठ, ७२ पक्ष क्षमण, १२ मासक्षमण, २ डेढमाही, २ त्रिमाही, ६ दोमाही, ९ चतुर्माही, १ छमाही, १ छमाहीमें ५ दिन कम । कुल ४१४९ उपवास !!! (३) श्रेणितप (१११ दिन के इस तपमें ८३ उपवास एवं २८ बिआसन होते हैं । ) (४) सिद्धितप (४५ दिन के इस तप में ३६ उपवास एवं ९ बिआसन होते हैं । (५) पिछले २० से अधिक वर्षों