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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ १८०/१७५/१२४ उपवास एवं एक ही द्रव्य से
ठाम चौविहार ५०० आबिल की आराधिका | महा तपस्विनीअ. सौ. विमलाबाई वीरचंद पारख ।
श्री जैन शासन में तपश्चर्या का अनूठा स्थान है। जन्म-जन्मांतर के कर्मों को काटने के लिए अमोघ उपाय है। अर्जुनमाली ओर दृढप्रहारी जैसे घोर पापी भी तप के प्रभाव से ही कैवल्य और मुक्ति को पा गये । पामर आत्मा को परमात्मा बनानेबाला तपधर्म आज भी जयवंत हैं।
अकबर बादशाह के समय में चंपाश्राविकाने १८० उपवास की महान तपश्चर्या के द्वारा अद्भुत शासन प्रभावना करवायी थी । वर्तमानकालमें मूल फलोदी (राजस्थान) के निवासी किन्तु हाल मद्रास में रहती हुई अ.सौ. श्रीमती विमलाबाई वीरचंद पारख (उ.व. ४०) ने निम्नोक्त प्रकार से महान तपश्चर्या द्वारा आत्मशुद्धि के साथ साथ अद्भुत शासन प्रभावना करवायी है।
८-९-११-१५-१५ (चौविहार उपवास)-१६(दो बार) -१७३०-३६-४१-५१ चौविहार उपवास-६१-६८-१२४-१७५-१८० उपवास !!!
उपवास के पारणे आयंबिल द्वारा वर्षांतप,अंत में मासक्षमण ! द्वितीय वर्षीतप अठ्ठम के पारणे आयंबिल द्वारा !!! उसके दौरान ६-९-६१
और अंतमें ५१ उपवास के बाद पारणा । इस वर्षांतप में अठ्ठम के पारणे में केवल गेहूँ की रोटी और गरम पानी से ही आयंबिल करती थीं !!!
वर्धमान आयंबिल तप की ३६ ओलियाँ, एक धान से नवपदजी की ११ ओलियाँ, एक दाने से नवपदजी की ९ ओलियाँ, लगातार ३१५१-१२०-५०० आयंबिल !...
.. वि.सं. २०५० में १८० उपवास करने के बाद वि.सं. २०५१ में ७२ दिन का सिद्धिवधू कंठाभरण तप किया, जिसमें प्रथम अठाई और एक दाने का आयंबिल, फिर लगातार ६ छठ्ठ, प्रत्येक छठ (बेला) के पारणेमें केवल १ दाने से आयंबिल, अंतमें अठ्ठम और उसपर लगातार ४१ उपवास इस तरह ७२ दिनों में कुल ६४ उपवास और ८ एक दाने के आयंबिल किये !!!