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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ एकांतरित दिनका मौन तो कई बार रखते हैं । व्याख्यान भी अत्यंत असरकारक शैलिमें देते हैं। रात को २॥-३ बजे उठकर आगमसूत्रों के अर्थ का सुंदर चिंतन करते हैं । किसीकी भी निंदा करनी नहीं और सुननी भी नहीं ऐसी उनकी प्रतिज्ञा है !!!
टी.वी., विडीओ, ब्यूटी पार्लर और फाईवस्टार होटेलों के इस विलासी विज्ञानयुग में भरयुवावस्था में सभी भौतिक सुविधाओं का परित्याग करके स्वेच्छा से संयम का स्वीकार करते समय इन दीक्षार्थीओंने उपस्थित हजारों की जनसंख्या को संबोधित करते हुए कहा था कि
_ "संयम हमारा पक्ष और मोक्ष हमारा लक्ष्य है । अब हम समभाव के सरोवर में स्नान करके साधनाओं का श्रृंगार धारण करेंगे । संयम के विविध अनुष्ठान ही हमारी आत्मचाहना होगी । संयम के स्वैच्छिक स्वीकार के साथ हम संसार को सलाम करते हैं । विश्वमैत्री के साथ संबंध बाँधने के लिए हम तथाकथित तुच्छ ऐहिक सुखों का त्याग कर रहे हैं तब आपकी आंखों में से आशिष बरसनी चाहिए, आँसु नहीं !" । . ...."संसार में सुविधाएँ हैं, मगर शांति कहाँ ? कोई भी काम टेन्शन बिना सेन्सन नहीं होता । डोनेशन के बिना एडमिशन नहीं मिलता ! ओपरेशन के बिना दर्द को दूर करनेवाले नहीं हैं । संसार में वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम, त्यक्ताश्रम, कानूनी और गैरकानूनी गर्भपात यह सभी दर्द रूप ही हैं, जब कि हम लोग तप-त्याग, साधना-सिद्धि और मोक्ष के मार्ग में प्रयाण करके मरीज बने बिना ही संपूर्ण निरामय स्वरूप में इस संसार से बाहर निकल रहे हैं । यहाँ हमारा सत्कार हो रहा है मगर वास्तविकता यह है कि जो सर्वसंग का परित्याग करता है उसीका सत्कार होता है।..."
धन्य है संयमीओं को ! धन्य है उनके माता-पिता को ! धन्य वह नगरी, धन्य वेला-घड़ी, मात-पिता-कुल-वंश... !