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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
दीक्षा ग्रहण करती हुई आठ सगी बहनें ।।।
आजसे करीब २३५० साल पूर्वमें श्री स्थूलिभद्रसूरिजी की सात बहनों-यक्षा, यक्षदिन्ना, भूता, भूतदिन्ना, सेणा, वेणा, रेणा,- ने दीक्षा अंगीकार की थी। उसके बाद अब तक इतनी संख्या में सगी बहनों ने दीक्षा ग्रहण की हो वैसी कोई घटना हुई नहीं थी।
किन्तु दि.१३-२-१९९५ के दिन उपरोक्त विश्व विक्रम को भी अतिक्रमण करनेवाली अद्भुत घटना कच्छ-वागड़ क्षेत्रमें रापर गाँवमें घटित • हुई थी । रापर से २१ कि.मी. की दूरी पर स्थित रामावाव गाँव के निवासी किन्तु व्यवसाय के हेतु से रापर में रहते हुए सुश्रावक श्री मणिलालभाई छगनलाल महेता और उनकी धर्मपत्नी रत्नकुक्षि सुश्राविका श्री कुंवरबाई की ६ सुपुत्रियाँ - वनिताबहन, मधुबहन, भारतीबहन, चांदनीबहन, रोशनीबहन और ज्योतिबहन ई.स. १९७८ से १९८४ तक में दीक्षा ग्रहण करके अनुक्रम से वंदिताबाई महासतीजी, मिताबाई महासतीजी, भारतीबाई महासतीजी, चांदनीबाई महासतीजी, रोशनीबाई महासतीजी और सुव्रताबाई महासतीजी के रूप में संयम की साधना कर रही हैं । उसके बाद उनकी बाकी रही हुई दो बहने शीलुबहन और पीतिबहन ने भी दि. १३-२-१९९५ के दिन संयम का स्वीकार किया है जिससे सगी आठ बहनों की दीक्षा का विश्व विक्रम भगवान श्री महावीर स्वामी के शासन में स्थापित हुआ है । इन दोनों बहनों के नाम सुहानीबाई महासतीजी और प्रियांशीबाई महासतीजी के रूपमें घोषित हुआ है । आठों बहनें बालब्रह्मचारिणी एवं उच्च व्यावहारिक शिक्षा संपन्न हैं । उनका केवल एक ही भाई है - भोगीलालभाई महेता जो रापर में व्यवसाय कर रहे हैं । आठों बहनोंने स्थानकवासी लीबड़ी अजरामर समुदाय में दीक्षा ग्रहण की है ।
उनमें से दो महासतीजीयों ने २८ आगम सूत्र कंठस्थ कर लिये हैं। दूसरे नंबर के मीताबाई महासतीजी मौनप्रिय एवं आध्यत्मिक साधना परायण हैं। उन्होंने लगातार १२-१२ महिनों तक भी मौन किया है।